रविवार, 20 जुलाई 2008

वी सी आर (तीन)

गीता के बाहर निकलने के इंतजार में जोगी के लिए एक एक लम्हा भारी पडा उसे गीता के साथ साथ विडियो की भी चिंता सताने लगी ,उसने कल रात ही अपने चेलों को आखरी रास्ता फ़िल्म लगाने का निर्देश दिया था फ़िल्म को कैसी ओपनिंग मिली होगी जोगी सोचने लगा दोपहर के तीन बजने को थे ,यानि फ़िल्म का पहला शो खत्म होने वाला होगा जोगी पहली बार विडियो से दूर है कूलर की दिव्य गंध उसे रह रह कर सताने लगी इधर गीता थोड़े श्रृंगार के बाद , बाहर ही गयी ।घर के बाहर गरमी का गुबार धूल बनकर उड़ने लगा जोगी को ये ताज़ी हवा का झोंका लगा । गुलाबी रंग की साड़ी पहने हुई गीता उसे पहली नज़र में ही भा गई साथ में गीता की भाभी भी गई उन्होंने ही उन दोनों के बीच बातचीत शुरू करवायी गीता की भाभी का मायका उमरानाला का है ।सो विडियो में फिल्म देखने का उनको भी बहुत शौक है ।वो इस नाते भी बहुत उत्त्साहित थी कि गीता का होने वाला पति विडियो में काम करता है। आज कौनसी फ़िल्म लगी है आपके विडियो में भाभी ने इस हल्के सवाल से बातचीत को हवा दे ही दी । जोगी को सवाल का अंदाज़ पसंद आया। जोगी ने बताया आखरी रास्ताभाभी उमरानाला की है उसने इस नाते उनसे सवाल किया .क्या आप हमारे विडियो में कभी फ़िल्म देखने आई हैं ? उन्होंने कहा आपके विडियो के अलावा हम किसी और विडियो में फ़िल्म नही देखते है भाभी ने उसे बताया गीता भी आपके विडियो में कई बार फिल्में देखी है

अच्छा जोगी ने हल्की मुस्कान और सीने में सुकून के भावों के साथ अपनी खुशी ज़ाहिर की । इस रिश्ते ने उसके दिल और दिमाग दोनों में ही आकर ले लिया था । उधर गीता को भी जोगीराम भा गया । उसकी मिथुन जैसी लम्बी जुल्फों ने उस पर जादू कर दिया । इसी बीच ,गीता की माँ ने गीता और उसकी भाभी को खाना लगाने के लिए कहा । जोगी की ओर से रिश्ता पक्का होता देख ,प्रकाश ने गीता के पिता को कहा कि कपडे मिठाई और पैसे दामाद जी के हाथ में रख कर बात को पक्का कर देते है । गीता के पिता ने कहा ठीक है । जोगी के माथे पर तिलक लगा कर इस रस्म को पूरा किया। जोगी गीता का हो गया .गीता जोगी की हो गई .सखाराम जी (जोगी के ससुर ) ने कहा कल तुम्हारे घर आकर पंडित से शादी की तारीख निकलवा लेंगे .हो सके तो तुम भी कल की छुट्टी और ले लेना .जोगी ने ठीक है कहा । जोगी की विदाई शानदार ढंग से हुयी । भाभी ने गीता की एक फोटो उसे सबकी नज़रों से बचाके दे दी ..और कहा कि तुम भी अपनी फोटो प्रकाश के हाथों भिजवा देना ।

विदाई के वक्त एक झलक जोगी ने फिर गीता का दीदार किया । वो इस मंज़र को आंखों में हमेशा के लिए क़ैद कर लेना चाहता था । उसे महसूस हुआ गीता से उसे प्यार हो गया है । आज का दिन उसके लिए बहुत बड़ा था .प्यार झुकता नही फ़िल्म का गाना "तुमसे मिलकर जाने क्यों और भी कुछ याद आता है ...." वो पूरे रास्ते गुनगुनाता रहा । विडियो के बजाय उसने प्रकाश से कहा कि उसे उमरा नदी के पुल पर ले चले । उमरा नदी के पास कैलाश के ढाबे पर बैठकर चाय और आमलेट के साथ जोगी सुनहरे कल के सपने बुनने लगा .शाम का वक्त बीतने लगा। माहौल में अँधेरा बढ़ने लगा । प्रकाश ने कहा रात का खाना ढाबे पर ही खाकर घर जायेंगे ।(जारी )

मंगलवार, 15 जुलाई 2008

वी सी आर (दो)


जोगीराम तरक्की की सीढियां चढ़ते जा रहा था । इन दिनों वो
काफी खुश भी था । उसकी शादी लिए उसके पिता ने पास के ही गाँव की एक लड़की देख ली। जोगी ने पहली बार sविडियो से छुट्टी ली । उसे लड़की देखने गोहजर (पास का ही गाँव ) जाना था । जोगी अपने खास दोस्त प्रकाश के साथ दुल्हनिया के दीदार के लिए निकल पड़ा । वैसे प्रकाश को साथ ले जाने की एक अहम् वजह ये भी थी कि उसके पास फटफटी (मोटर साईकल ) थी । और इस रिश्ते में दोनों परिवारों के बीच वो मध्यस्थ की भूमिका में भी था । वो देखने में कैसी होगी ? जोगी का मन बार बार ख़ुद से यही सवाल कर रहा था । क्या वो फिल्मों की जानकर होगी ? गोहजर में कोई विडियो भी तो नही । क्या उसने कभी विडियो देखा भी ये नही ।
अगर नही भी देखा होगा तो क्या ? एक बार बस वो दुल्हन बनकर घर आ जाए .फ़िर उसको ढेर सारी फिल्में दिखा दूँगा । जोगी का ये भी मानना था विडियो में काम करने वाले उस जैसे आदमी के लिए ये ज़रूरी है कि उसकी बीवी कमसेकम फिल्मों की शौकीन तो हो । आख़िर जब देर रात वो कम से घर पर लौटे तो कम से कम उसकी बीवी ये तो पूछे ही कि आज कौनसी फ़िल्म लगी है । वो भले चार क्लास न पढ़ी हो लेकिन सिनेमा के मामले में वो अंगूठा छाप न हो । उसके भीतर सवालों का ज्वार भाटा रह रह के हिलोरे मार रहा था। कल रात ही उसने प्यार झुकता नही फ़िल्म देखी थी .फ़िल्म का मिथुन और पदमनी उसके जहन में चल रहे थे ।
मिथुन जैसे बाल रखना जोगी का अपना स्टाइल था । गाँव के लोग कभी कभी उसे प्यार से मिथुन भी कह देते थे । बहरहाल ,वो गोहजर आ गया । उसने अपनी होने वाली ससुराल में पैर रख ही दिए .होने वाले दामाद की खातिर दारी में पूरा घर लग गया । सखाराम जी जोगी के होने वाले ससुर है ।
जोगी के किस्सों से वे काफी अभिभूत थे । उसकी तरक्की का डंका उनके कानों में भी गूंजा था । यही वजह थी कि अपनी बड़ी बेटी गीताबाई के लिए उन्हें जोगी ही सबसे उपयुक्त लगा । चाय पानी की रस्म आदायगी के बाद । जोगी को गीता बाई के दीदार कराने की पहल प्रकाश ने ही की । प्रकाश का पहले से ही इस घर में आना जाना था .सो, चाय के कप पहुंचाने के बहाने वो रसोई में दाखिल हो गया । उसने घर की महिलाओं से कहा कि बाई को दिखा देते है ।
इधर जोगी का दिल धड़कने लगा था । वो बीच बीच में अपने भावी ससुर को अपने काम के बारे में भी बता रहा था .फिल्मों के बारे में हालाँकि उनकी रुचि कुछ कम थी । इसलिए वक्त की नजाकत के अनुरूप जोगी उनसे खेत खलियान और थोड़े फिल्मिस्तान की बात कर रहा था । उसे ये सब अच्छा नही लग रहा था । बार बार उसकी निगाहे घर के भीतर आ जा रही थी .वो गीता के बाहर आने का इंतजार जो कर रहा था (जारी )

सोमवार, 14 जुलाई 2008

वी सी आर (एक)


उमरानाला में विडियो का आगमन हो चुका था । तीन तीन विडियो हॉल से उमरानाला का माहौल अब पूरे बारह महीने के लिए फिल्मी हो गया। अब न तो गाँव के लोगो को टूरिंग टाकिज के साल में एक बार आने का इतंजार होता था । न ही अब छिंदवाडा में जाकर फ़िल्म देखने के लिए परेशान होने की ज़रूरत थी । वैसे मोहखेड़ में सबसे पहले विडियो हॉल खुला ,उमरानाला में विडियो हॉल इसके बाद ही शुरू हुए । गाँव के विडियो संचालकों ने गाँव में टूरिंग टाकिज की आवाजाही को रुकवा दिया । गाँव की फिजा में विडियो का चलन तेज़ी से बढ़ गया । नई नई फिल्में आसानी से गाँव के लोगो को देखने के लिए मिलने लगी । गाँव में एक नई संस्कृति विडियो संस्कृति पनपने लगी । विडियो हॉल में दूर दराज़ से लोग फिल्म देखने आने लगे । मिथुन ,गोविंदा ,जीतेन्द्र गाँव की नयी पीढी पर असर करने लगे
गाँव के ही एक विडियो में दीनाजी (परिवर्तित नाम ) का लड़का जोगीराम (परिवर्तित नाम) गेट कीपर का काम करता था । सुबह नौ बजे से जोगीराम की दिनचर्या शुरू हो जाती थी । फ़िल्म के पोस्टर को वो बस स्टैंड ,जाम रोड के तीगड्ढे ,रेलवे स्टेशन रोड पर लगाने के लिए निकल जाता था । फ़िल्म के पोस्टर लगाने के बाद जोगीराम गाँव की होटल में चाय पानी करके गेट कीपर के अपने काम के लिए तैयार हो जाता । चार शो के दौरान वो गेट कीपर का अपना काम मुस्तैदी से करके , रात में आखरी शो नौ से बारह के बाद अपने गाँव हिवरा के लिए चला जाता था ।
जोगी
की जिंदगी बड़े मजे से फिल्मों के बीच चल रही थी । उसे हर फ़िल्म पूरी मुंह जुबानी याद हो जाती थी। नई फ़िल्म जोगी हॉल के अन्दर बैठकर देख लिया करता था । हिवरा में लोगो के बीच उसकी अच्छी आव भगत होती थी ,क्योंकि गाँव के लोगो को लगता था की जोगी फिल्मी दुनिया का पंडित है ।फिल्मों का अच्छा जानकर
है । कौन सी फ़िल्म देखनी चाहिए कौन सी नही वह गाँव के लोगो को अपनी विशेषज्ञता के आधार पर बता देता था वो ये भी बता सकता था कि कौन सी फ़िल्म हो सकती है? कौन सी फ़िल्म फ्लॉप । फ़िल्म किसलिए हिट होगी और क्यों फ्लॉप जोगी के पास इसका भी माकूल जवाब होता था .उसके इस अनोखे गुणों के मुरीद विडियो संचालक भी थे ।
इसलिए कई बार ऐसा भी हुआ की जोगी को दूसरे विडियो संचालकों से भी काम करने का प्रस्ताव मिला .लेकिन जोगी ने अपने विडियो को नही छोडा। जोगी की जिम्मेदारिया विडियो में अब बढती ही जा रही थी .जोगी को अब छिंदवाडा जाकर फिल्मों के पोस्टर ,और विडियो कैसेट्स लाने लगा । अब लगभग उसकी मर्जी से ही फिल्मे लगती और उतरती । उसके हाथ के नीचे दो नए गेट कीपर आ गए थे , जोगी अब विडियो का ओपरेटर बन गया । जोगी की तरक्की से उसके घर वाले भी बेहद खुश थे । इसलिए उसके पिता ने उसकी शादी के लिए लड़कियां ढूंढनी शुरू कर दी ।(जारी )

मंगलवार, 8 जुलाई 2008

गब्बर की चाल (समापन किस्त )


किसनवा जहाँ एक और हमें हँसा हँसा के लोटपोट कर रहा था .वहीं हमारे मन को गब्बर की चाल परेशान कर रही थी । हमें लगने लगा था कहीं ऐसा तो नही गब्बर किसनवा को मरने से पहले खूब हँसाना चाहता है .किसनवा को हँसता देख हमें उस पर तरस आने लगा था .साथ ही हमारी खीज भी बढ़ती ही जा रही थी आख़िर क्यों वो उसकी चाल को समझ नही रहा है ? किसनवा गाना सीख रहा है । वहीं गब्बर के घर में कुछ खटपट होती है । हमने सुना कि गब्बर किसन को एक बड़ा स्टार बनाना चाहता है । बिसन (गब्बर) बच्चों का ज़हाज़ लेकर जाता है । अब हमें वो थोड़ा थोड़ा अच्छा आदमी लगने लगा । बच्चों के साथ उसका गाना "बिसन चाचा कुछ गाओ ..." हमें काफ़ी पसंद आया । तभी ज़हाज़ में फ़िल्म के असली खलनायकों की एंट्री होती है । हमारे दिमाग से गब्बर को लेकर ग़लत फेहमियाँ भी दूर होने लगती है । मन का बोझ कुछ हल्का होने लगा । हमें समझ आने लगता है कि गब्बर ही किसन का बचपन का दोस्त बिसन है ।
और बिसन के मामा शकुनी और कंस की तरह उसका काम तमाम करना चाहते है ।
किसन
बिसन को इस मुसीबत से बचाता है । दोनों का याराना हमारे दिलों दिमाग में गहरा असर छोड़ जाता है । फ़िल्म के क्लाइमेक्स में मार धाड़ देखने की हमारी दिली मुराद भी पूरी हो जाती है । आसमान में उड़न खटोले से नकली नोटों की बारिश होती है । सारे बुरे लोग नोटों पर झपट पड़ते है । किसना बिसन की जीत होती है । हम तालियाँ पीटते है । इस बात का वैसे कोई खास फर्क नही पड़ता की मैंने और मेरे दोस्तों ने "याराना" का सबक गब्बर से सीखा । गब्बर हमें दोस्ती सिखाने वाला गुरु लगा । इस फ़िल्म के बाद कभी भी हमें अमज़द खान (गब्बर) बुरा आदमी नही लगा । आसमान में उड़ते उड़न खटोले को देखकर हम सभी दोस्त उसके पीछे पीछे भागने की कोशिश करते थे , तो वहीं विलायती पतंग उडाने का अरमान हमारे बाल मन में कई दिनों तक रहा । हमने इसको लेकर कई कहानियाँ भी बुनी लेकिन बचपन में इसमे उड़ने की हसरत हसरत ही रही

एक दफे इलेक्शन के समय एक निर्दलीय उम्मीदवार ने किराय के हेलीकाप्टर से अपने पर्चे हमारे गाँव में गिराए थे .हमें ये पर्चे नकली नोट ही लगे .हमने आवाज़ भी लगायी किसन किसन ..फिर हमें लगा कि फ़िल्म का हीरो हमारे गाँव में भला क्यों आएगा ?हमने उस नेता के पर्चों को बीन बीन कर जमा भी किया याराना का सीन एक बार फिर ताज़ा हो गया .हमारा भ्रम भी मिट गया .आख़िर गब्बर से भी तो याराना सिखा जा सकता है .एक फ़िल्म का दुश्मन दूसरी फ़िल्म में दोस्त भी हो सकता हैगब्बर और अमिताभ बच्चन में भी दोस्ती हो सकती है !!