रागदेश: नेताजी और जबलपुर
[1938 के त्रिपुरी (जबलपुर) अधिवेशन के बाद नेताजी और कांग्रेस की राहें जुदा हुई। अधिवेशन के चार महीने बाद नेताजी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। राज्य सभा टेलीविज़न की पहली फीचर फिल्म रागदेश के बहाने इतिहास के इस रोचक पहलू का जिक्र ]
(जबलपुर में तिलवारा मार्ग पर नेताजी की प्रतिमा) |
जब-जबलपुर में आज की पेशकश ‘नेताजी
सुभाषचंद्र बोस और कांग्रेस का त्रिपुरी
(जबलपुर) अधिवेशन’ । 28 जुलाई को ‘राज्य सभा टेलीविज़न’ की पहली फ़ीचर फ़िल्म ‘रागदेश’ रिलीज़ हो रही है। ‘लाल क़िला
ट्रायल’ की पृष्ठभूमि पर बनी इस
फ़िल्म में आज़ाद हिंद फौज के तीन अफ़सरों पर चले मुकदमे की दास्तां है। नेताजी
सुभाषचंद्र बोस आज़ाद हिंद फौज से जुड़ी कई ऐसी अनछुई कहानियां हैं। जो सिनेमाई
क़िस्सागोई के नज़रिये से मुफ़ीद मानी जा सकती हैं। ‘रागदेश’ के
बहाने नेताजी और कांग्रेस के त्रिपुरी (जबलपुर) अधिवेशन का जिक्र इसलिए भी अहम है,
क्योंकि ये अधिवेशन नेताजी और भारत के आज़ादी के आंदोलन के इतिहास में एक अहम मोड़
साबित हुआ। और यहां से ही नेताजी और कांग्रेस के रास्ते जुदा होने की नींव भी
पड़ी।
(राज्य सभा टेलीविज़न की पहली फ़ीचर फ़िल्म रागदेश का पोस्टर) |
‘नेताजी कांग्रेस अध्यक्ष
बने’
जनवरी
1938 में त्रिपुरी में हुए कांग्रेस के 52 वें अधिवेशन में नेताजी पट्टाभि
सीतारमैया को 203 वोटों से हराकर ... कांग्रेस अध्यक्ष बने। नेताजी की जीत पर
जबलपुर में 52 हाथियों का शानदार जुलूस निकाला गया। बड़ी तादाद में लोगों ने जश्न
मनाया। हालांकि तेज़ बुखार होने की वजह से नेताजी ने इसमें शिरकत नहीं की थी। गांधीजी ने नेताजी की
जीत को खुद की हार के रूप में लिया। क्योंकि इस चुनाव में गांधीजी ने पट्टाभि का
समर्थन किया था। यहां तक की गांधीजी ने तब कहा था “पट्टाभि की हार मेरी व्यक्तिगत हार है।” इस अधिवेशन के करीब चार महीने बाद
नेताजी ने खुद ही कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया। और आज़ादी के आंदोलन के लिए
संघर्ष की नई राह चुन ली।
(फ़ाइल फ़ोटो - नेताजी की जीत का जश्न, 52 हाथियों का विशाल जुलूस त्रिपुरी अधिवेशन 1938) |
‘नेताजी का भाषण’
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डिग्री तेज़ बुख़ार होने के बावजूद ...29 जनवरी
1939 को त्रिपुरी अधिवेशन में नेताजी ने ओजस्वी भाषण दिया। जिसमें तात्कालिक
परिस्थितियों समकालिक राजनीति को लेकर उन्होंने खुद का नज़रिया रखा। नेताजी ने कहा
“मुझे इस बात का दुख है कि कांग्रेस
में कुछ ऐसे निराशावादी व्यक्ति हैं। जो ये सोचते हैं कि ब्रिटिश साम्राज्य पर
किसी शक्तिशाली आघात के लिए ये समय अनुकूल नहीं है। किंतु यर्थाथ दृष्टि से विचार
करने पर, मैं निराशा का कोई आधार नहीं देखता।”
‘नेताजी का जबलपुर से
नाता’
त्रिपुरी
अधिवेशन समेत नेताजी तीन बार जबलपुर आए। 1932 को उन्हें सिवनी की जेल से केंद्रीय
जेल लाया गया। इसके बाद 1933 में भी वो यहां आए। जबलपुर की केंद्रीय जेल में
नेताजी की याद में एक स्मारक बनाया गया है। उनकी इन यादों को संजोने के लिए ...
जबलपुर की सेंट्रल जेल और मेडिकल कॉलेज नेताजी के नाम पर ही रखा गया है।
(केंद्रीय जेल में बना नेताजी का स्मारक) |
‘नेताजी और त्रिपुरी अधिवेशन का स्मारक’
जबलपुर
का कमानिया गेट इस अधिवेशन की याद में बनाया गया। तिलवारा सड़क पर बीचों बीच
नेताजी की एक आदमकद प्रतिमा भी है। लेकिन अफ़सोस की बात तिलवारा पहाड़ी पर
त्रिपुरी अधिवेशन की याद में बनाया गया ‘त्रिपुरी
स्मारक’ अब जीर्णशीर्ण अवस्था
में है। सरकारिया उपेक्षा का
अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यहां इससे जुड़े इतिहास को बताने के लिए
एक बोर्ड स्मारिका या पट्टिका भी नहीं है। और तो और नेताजी की कोई मूर्ति नहीं है।
(त्रिपुरी अधिवेशन स्मारक जबलपुर) |
(त्रिपुरी स्मारक में ध्वजारोहण का खंबा) |
तिरंगा लहराने के लिए एक खंबा जरूर है। शायद पंद्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी को यहां झंडा लहराया जाता हो। नेताजी की याद शायद नारे भी लगते हों। इस बारें में जल्द ही सूबे
के मुख्यमंत्री को पत्र लिखने वाला हूं। हालांकि इस पहाड़ी के ठीक नीचे बाग़
बग़ीचे वाला गांधीजी और नेहरू जी का स्मारक भी है। जो बेहद अच्छी हालत में है।
जबलपुर आएं तो इन सभी जगहों पर नेताजी को नमन करने के लिए ज़रूर जाएं।
राज्य सभा टेलीविज़न, Gurdeep Singh Sappal सर, तिग्मांशु भाई पूरी टीम को ‘रागदेश’ की सफलता के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं!!!
#raagdesh