गुरुवार, 19 जून 2008

गब्बर की चाल (2) /टूरिंग टाकीज (3)


हमारे लाख मना करने के बावजूद किसनवा शहर गया फ़िल्म अब रोमांचक हो चुकी थी .चने चबाकर हमारा दिमाग भी अब फ़िल्म में चल रही गब्बर की चाल को तेज़ी से समझ रहा था बहरहाल ,गब्बर किसन को लेकर शहर गया .गब्बर के घर में बिसन की माँ को देखकर हमें थोडी रहत मिली .मन में संतोष हुआ ..लेकिन कुछ नए सवाल भी दिमाग में कोंधने लगे कहीं ऐसा तो नही गब्बर ने बचपन में ही बिसन को मार दिया हो उसकी ज़मीन जायजाद हड़प ली हो. और यहाँ शहर में बिसन की माँ और किसनवा को, हम सबको बेवकूफ बना रहा हो
हमारी उत्सुकता अब बढती ही जा रही थी .तभी कमरे से किसी के पिटने की आवाज़ आती है हमें लगा अगर कमरें के भीतर मारधाड़ चल रही है .तो नीलकंठ टाकिज वाले हमें ये मारधाड़ क्यों नही दिखा रहे हैं हमारा दिमाग कमरें के भीतर चला गया लेकिन तभी देखा की किसनवा गब्बर की धुनाई कर रहा ..हमने खुश होकर तालियाँ पीटी ..टाकिज के अन्दर का शोर बढ़ गया .कुछ लोग ठहाके भी लगा रहे थे हमें मज़ा आया कि किसनवा देहाती होने के बाद भी कमज़ोर नही है .उसने गब्बर को जम के धुना .तभी माँ जी और किसन की भाभी कमरें के अन्दर जाते हैं अच्छी खासी मारधाड़ के सीन में उनकी दखलबाज़ी हमें ज़रा भी अच्छी नही लगी . हमारा मन था की गब्बर अभी और भी पीटे ..चालबाज़ कहीं का !!
गब्बर किसनवा को सिंगर बनाना चाहता है ..हमको इसमें भी नई साजिश नज़र आने लगी . दाल में काला क्या
है
हम सोचने लगे गब्बर किसन को गाना सिखाने ले जाता है .वहां हमें सभी लोग भले लगे ..इसलिए कुछ देर के लिए हमारा ध्यान गब्बर के खतरनाक दिमाग से हट गया .हम किसन की कोमेडी का मज़ा लेने लगे . कच्चा पापड़ पक्का पापड़ को दोहराने की कोशिश करने लगे। टाकीज के अन्दर सब का हस हस के बुरा हाल था ,सब लोटपोट हो रहे थे
तभी इंटरवेल की घंटी बजी .हम गब्बर की चाल और गब्बर को हराने की अपनी अपनी योजनायें लेकर टाकीज से बाहर गए .गब्बर की चाल पर चर्चा गर्म हो रही थी .हमने उमरानाला के महाराज के बड़े लिए ..और अपने अपने ढंग का क्लाइमेक्स लेकर टाकिज के अन्दर दाखिल हुए परदे पर साबुन सोडे के विज्ञापन चल रहे थे ..इसके बाद कुछ आगामी फिल्मों को झलकियाँ चलने लगी .वक्त काटने के लिए हम कच्चा पापड़ पक्का पापड़ तेज़ी से दोहराने लगे यूँ भी ,हमारा मतलब तो सिर्फ़ और सिर्फ़ गब्बर की चाल से ही था
(जारी है ......)