गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

सन्यास

देविदास का जीवन उमरानाला में यूँ तो बड़ा सहजता से बीत रहा था । ग्यारहवी की परीक्षा में पाँच पाँच बार फ़ैल हो चुका था । पत्राचार से बोर्ड परीक्षा पास करने की वो तीन बार कोशिश कर चुका था। नतीजा वहां भी सिफर ही रहा । ज़िम्मेदारी के नाम पर देवी के जिम्मे कोई काम भी न था। सुबह से शाम बस तफरी । कभी कभी कभार खेतों में जाकर वो बस घूम के आ जाता था। देवी को उमरा नदी की शांत लहरें अच्छी लगती उसका जीवन भी बस नदी की तरह अस्तित्वगत शांत ही बह रहा था । कभी कभार देवी के जीवन में भी उमरा नदी की तरह गति आ जाती ,तरह तरह के पेशे व्यवसाय वो अपना लेता । लेकिन फ़िर वही ...देवी को कोई भी काम रास नही आता ।दिन बीतते जा रहे थे। देवी का जीवन भी बीत रहा था ।
एक दिन छिंदवाडा से लौटते हुए देवी की नज़र किताबों की एक दुकान पर पडी । एक दाढ़ी वाला बुजुर्ग मेहरून चोला पहने किताबों की दुकान से कुछ किताबे खरीद रहा था । देवी ने उसे बड़े गौर से देखा । उस बुजुर्ग के चेहरे पर उसे बड़ी शान्ति और एक तेज़ सा महसूस हुआ । उसके गले में एक माला लटक रही थी । देवी ने उससे पूछ लिया "आपके गले में ये माला किसकी है ?क्या ये कोई नए संत हैं ?"उस बुजुर्ग ने देवी से कहा "ये आचार्य रजनीश हैं जिनको हम सभी सन्यासी ओशो कहते हैं ?" देवी ने कहा आप कैसे सन्यासी हैं सन्यासी तो जंगलों में घुमते हैं । पहाडो पर धुनी रमाते हैं !! बुजुर्ग थोड़ा हसे फ़िर हलकी मुस्कान से कहा "तुम एक काम करो बेटा ये किताब पढो मैं यहीं बड़वन में रहता हूँ । देवी ने वो किताब ले ली। रास्ते भर सोचता रहा । उसे ओशो शब्द पर हसी भी आई ओशो ये कोई नाम हुआ ? रात को अपने कुछ दोस्तों से उसने इस चर्चा का जिक्र किया । फ़िर पूरेहफ्ते किताब पढ़ी । किताब का एक एक हर्फ़ उसके जीवन में हलचल मचाने लगा । देवी के शांत से जीवन में क्रांति घटित होने लगी ।
वो बदल रहा था । कभी गाँव के पंडितो से वो धर्म का मतलब पूछता तो कभी गाँव के मौलवी से वो मजहब के बारे में तर्क वितर्क करता । उमरानाला में वो देखते ही देखतेचर्चा बन गया । उसका व्यवहार घर के लोगो के लिए भी चिंता बनते रहा था ।बस स्टैंड की यादव की चाय की दुकान में दोस्तों से तर्क करता । ओशो की वाणीउसके दिल तक असर कर रही थी । लक्ष्यविहीन जीवन को जैसे एक लक्ष्य मिल रहा था । छिंदवाडा के स्वामी के आग्रह पर वो दोस्तों के साथ पचमढ़ी शिविर गया । शिविर में ध्यान सीखा । ओशो के प्रवचन वाले बहुत सारे टेप किताबे तस्वीरे लेकर वो गाँव में आया
गाँव में ध्यान की नई हवा बहनी शुरू हो गई । देवी ने गाँव में ध्यान शिविर भी करवाए । लोग मस्ती में झूमने लगे । स्वामी जी के नाम का संबोधन आपस में चलन में आ गया । ओशो की टोली बन गई ."उत्सव हमारी जात आनन्द हमारा गोत्र "को मानने वाले उर्जावान युवको का समुदाय जो प्रेम पूर्ण जीवन को जीने में यकीन रखता है । ये एक अनोखा सन्यास था जिसमें योगी पहाडो पर नही जाता बल्कि समाज में रखकर समाज को जीवन का अर्थ सिखाता है । देवी को सन्यास लेने के बाद नया नाम मिल गया"जीवन सुगंध" । गाँव के और भी लोग जिन्होंने सन्यास लिया उन्हें भी नया नाम मिला । उत्सव और आनन्द जीवन को सानन्द करने लगे । नए युग के स्वामी नया परिवेश बनाने लगे । ध्यान की ये बयार उमरानाला के माहौल में आज भी बह रही है ।
उमरानाला के सभी सन्यासी मित्रो को ओशो के जन्म दिन की
हार्दिक बधाई !!!

1 टिप्पणी:

karmowala ने कहा…

ओशो का जीवन प्रेरणादायी है हम सभी के लिए
आपकी रचना को पढ़ कर लगा की आपके जीवन मे ओशो ही कही न कही विराजमान है आज नही तो कल हम आपको भी इस रूप मे देखंगे ये मेरा मानना है
जय श्री राम
जय हिंद