गुरुवार, 31 जनवरी 2008

कहाँ है वो बुढ़िया ? /उमरानाला की बात (०५)


बचपन मे हमारी बालभारती कि किताब मे एक कविता थी " चल रे मटके " .दरअसल ये कविता एक ऐसी बुढ़िया के बारे मे थी जो कि बहुत सारा धन लेकर रास्ते मे चोरों और जानवरों को चकमा देकर अपनी ससुराल तक सुरक्षित जाती है . क्लास मे ये कविता हम ज़ोर ज़ोर से लय मे गाते थे । कविता कुछ इस तरह है :
हुए बहुत दिन बुढ़िया एक
चलती थी लाठी को टेक
उसके पास बहुत था माल
जाना था उसको ससुराल
मगर राह मे चीते शेर
लेते थे राही को घेर
ऐसी मुश्किल मे ये बुढ़िया अपने दिमाग का इस्तेमाल कर एक उपाय करती है . वो बाज़ार से एक बड़ा सा मटका लेकर उसके अन्दर बैठकर" चल रे मटके म्म्क टू ....." गाते हुए अपनी ससुराल तक जाती है . " चल रे मटके म्म्क टू ....." किताब मे बुढ़िया का एक सुन्दर सा चित्र था ,उसका मटका भी बड़ा सुन्दर था . बीच मे चोर और चीते शेर के भी चित्र थे . मैंने गाँव कि बुजुर्ग महिलाओ मे इस बुढ़िया को ढूंढने कि कोशिश की . बाज़ार मे मटके देखे कई देर तक मे मटकों को गौर से देखता .कुम्हार से पूछता क्या तुम्हारी दुकान से कोई बुढ़िया मटका लेकर अपनी ससुराल जाती है . वो बस हँसकर अपने काम पर लग जाता .मैंने उतना विशालकाय मटका अभी तक नही देखा ,उसका चित्र आज भी मेरी नज़रों के सामने है . सम्प्रति , मध्य प्रदेश मे प्राथमिक शिक्षा का कोर्स बदल गया है . बुढ़िया कि कविता कई सालो से अब इसमे नही है . बालभारती की वो किताब भी नही है . बुढ़िया के साहस की कहानी नही है . ये कविता अब तक मुझे याद है यही इसका जादू है . ढेर सारे गहने पहने वो बुढ़िया शायद अब अपनी ससुराल मे रहती हो ?

1 टिप्पणी:

Alok Mishra, Journalist ने कहा…

bahut badiya, bachpan ki yad taza kar di is kavita ki panktiyon ne

budiya ne sochi tadbeer
jisase chamk uthi uski taqdeer

matka ed mangaya mol
lamba-lamba gol matol

usmen baithi budiya aap
sasural chali chupchap

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