गुरुवार, 31 जनवरी 2008

हिवरा से सवेरा होता है /उमरानाला की बात (०७)


मेरे घर की खिड़की से हिवरा गाँव की पहाडी दिखती है . मैं सुबह सुबह इन पहाडियों से रोज़ सूरज को निकलते देखता था . बचपन मे मुझे लगता था कि हो न हो ये हिवारा गाँव ही जहाँ से सूरज निकलता है ,और शाम होते ही मेरे घर के पीछे वो डूब जाता है . पापा सुबह के सूरज को देखने कि बात बचपन से हमे कहते रहे है . साथ ही पापा हमे ये सीख भी देते कि सूर्योदय के बाद देर तक सोने से स्वास्थ्य ,धन और विद्या तीनो का नुकसान होता है .वो हमेशा कहते हैं कि जो देर तक सोते है ....वो प्रकृति के सौन्दर्य बोध से वंचित रहते है . सुबह का सूर्य बाल रुप मे बड़ा सुन्दर मनोरम लगता है . सनसेट पॉइंट अक्सर जिक्र मे आता है , लेकिन घर कि खिड़की से सवेरे सवेरे सूर्योदय का दीदार घर कि खिड़की को एक अदद सन राइज़ पॉइंट बनाता है . हिवरा की पहाडी ,उसके पहले खेत खलियानो से निकलते सूरज कि दस्तक .... मुझे बेहद भाती थी . कई बार छत पर चढ़कर हम इस खूबसूरत दृश्य का नज़ारा करते थे .
हिवारा बहुत दिनों तक मुझे सूरज का घर लगता था . उमरा नदी के पास जाकर इन पहाडियों से निकलते सूर्य का भी दीदार किया . ये भी बहुत सुन्दर नज़ारा होता है . वैसे रेलवे पुल से निकलता हुआ सूरज भी बहुत अच्छा लगता है जिसका नज़ारा उमरा नदी के सड़क पर बने पुल से सीधे किया जा सकता है . अपने गाँव मे सुबह कि सैर करते हुए मैंने हर जगह से इस बेहतरीन नज़ारे को देखा . यकीनन मुझे आज भी अपने गाँव कि सुबह सबसे उम्दा और अच्छी लगती है . बाद मे तो ये पता चल ही गया कि सूरज का घर कहीं और है .लेकिन इससे फर्क भी क्या पड़ता है हिवरा को सूरज का घर कहने से सूरज बुरा नही मानता है !!

कोई टिप्पणी नहीं: