बुधवार, 25 मार्च 2009

अदृश्य शक्ति

मैं कहता कहता था अमेरिका को भी एक दिन हमारी ताक़त का एहसास हो जाएगादौड़ा दौड़ा एक दिन हमारे पीछे आ जाएगा । ये बताओ आज का अख़बार आज सुबह की खबर किसने किसने देखी ? बारहवी आर्ट संकाय के लगभग सभी बच्चो ने हाथ खड़े कर दिए । गुड गुड वैरी गुड ...मुंह में आ रही तंबाखू की पीक को क्लास की पीछे वाली खिड़की से बहार थूकते हुए राजनीति विज्ञान के टीचर विश्वजीत ने कहा .... तम्बाकू की नई खुराक को रगड़ते हुए ..क्यों बे सागर क्या खास ख़बर है ???
स्स्स्सर अमेरिका का प्रेसीडेंट ओबामा हिंदुस्तान की डेमोक्रेसी को दखने समझने के लिए उमरानाला आ रहा है ....स्स्स्स्सर क्या वो सचमुच हमारे गाँव में आ रहा है । आएगा क्यों नही ? हमारी डेमोक्रेसी बल्ड की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी है । अच्छा तुम लोग ये जानना नही चाहोगे ...कि वो सिर्फ़ चुनाव देखने आ रहा है या कुछ और ही राज़ है ।
राज़ ...सर हमारे गाँव में आने के पीछे क्या राज़ हो सकता है ?राज़ तो है ...सोचो । कितनी बार कहा है ध्यान से अख़बार पढ़ा करो । राजनीति की पढ़ाई है । घर में किताबों को देख कर पूरी नही होगी । राजनीति की असली पढ़ाई तो अख़बार पढने से होती है (मास्टर जी अपने ज्ञान की गंगा बहाने लगे )
जानते हो मेरे घर में कितने अख़बार आते हैं (क्लास के कुछ शरारती बच्चे एक ख़ुद का ख़रीदा हुआ बाकी दस इन्हा उन्हा से बटोर लेता हैऔर तो और स्कूल की लाइब्रेरी में भी एक भी अखबार बचने नही देता ) क्यों रे गोधन तू तो मेरे पड़ोस में रहता है । ज़रा खडे होके बता मेरे घर में कितने अख़बार आते हैं .... स्स्सर दस नही नही ग्यारह बारह ....
आप लोग हैं कि अख़बार नही पढ़ते न्यूज़ चैनल नही देखते भइया आपकी पढ़ाई तो राम भरोसे है
हाँ ! तो मैं कह रह था ...इसमे अमेरिका की कोई कोई चाल है मैं तो कहूँगा ओबामा उमरानाला रहा है तो ये एक बड़ी साजिश है देखना चुनाव के बाद स्विस बैंक में बोरे भरके रुपया दबाने वाले कई नेताओं की छुट्टी हो जायेगी अरे अमेरिका में मंदी है । और यहाँ चुनाव में जैसे रुपयों का समन्दर बह रहा है । इतना पैसा कहाँ से आ रहा है । ये सब जानने ही वो आ रहा है । चुनाव उनाव तो बहाना है
इधर क्लास में विश्वजीत मास्साब का लेक्चर चल रहा था । गाँव की गलियों चौपालों खेतो में ओबामा ओबामा की लहर बह रही थी हर तरफ ओबामा के चर्चे हो रहे थे लेकिन गाँव के लगभग आखरी छोर पर उमरानाला पुलिस चौकी में गाँव के सिपाहियों मुंशियों की अलग तरह की परेड चल रही थी । बड़े बड़े अधिकारी रोज़ चौकी में आने लगे थे । आख़िर अमेरिका का राष्ट्रपति आ रहा है । पूरे प्रदेश के पुलिस के आला अधिकारीयों ने गाँव के आस पास डेरा जमा लिया था । चौकी के पास खाली पड़े खलियान को दिन रात मेहनत कर पुलिस ग्राउंड का रूप दिया जा रहा था ।
डीजीपी बंसल ने चौकी इंचार्ज रूप सिंह परिहार को आवाज़ लगाई ...रूप सिंह कहाँ मर गया बे । आया साबजी । सावधान विसराम रूप ने जम कर एक सेलूट मारा । देख रूप ...ये सेलूट वेलूट तो कुछ दिन के लिए अपनी गाँ *** में डाल ले किस किस को सेलूट मारेगा नालायक । हमे देख रहा है ...किनते सारे बाप दादे खड़े है । देख सबको घं ** पे मार रहे हैं न !!!
रूप सिंह टोपी के अन्दर हाथ को डालकर सर खुजाते हुए जी साब जी । मैं कह रहा था वो खलियान धीरे धीरे मैदान जैसा लगने लगा है जी ..गाँव के कुछ निक्कमे लोगो को भी डंडा दिखाके काम पे लगा दिया है । बंसल ने सिगरेट का काश लेते हुए । इस ओबामा के बच्चे को भी जाने क्या सूझी जो इस गाँव में मर**ने आ रहा है । हजुर ठीक कहते हो । अरे हाँ यार !!चुनाव में इधर उधर ड्यूटी के नाम पर घूम लेते अच्छा मनोरंजन हो जाता । एक दो छुटभैयों को घुसे जमा देता ...चुनाव के बाद तो सालो की हजुरी करनी पड़ती है । एक बार केन्द्र में अपनी सरकार आए फ़िर एक के माँ के *** को देख लूँगा ।
बंसल तब तक पुलिस चौकी की टूटी कुर्सी पर बैठ चुका था रूप उसके पैरों के पास नीचे बैठ गया । वैसे साहब पूरे परदेश की पुलिस फोर्स तो यहाँ मर** रही है । तो चुनाव कैसे होंगे । बंसल ...चुनाव का क्या है चू**ये वो तो हो ही जायेगा । ये ओबामा कौन साला पूरे चुनाव के लिए यहाँ आ रहा है । तीन दिन का दौरा है । तीन दिन बाद वो चला जाएगा इस्लामाबाद पाकिस्तान की बजा** और हम यहाँ मिल कर चुनाव की ड्यूटी कर लेंगे ।
देख रूप चुनाव तो तू भूल जा । मुझे भी सबने यही कहा है । तू सिर्फ़ ध्यान दे ओबामा पर पूरी मध्य प्रदेश पुलिस महकमे की इज्ज़त की बात है । अरे होगी स्काट लैण्ड पुलिस न्यूयार्क पुलिस एम् पी पुलिस किसी से भी कम नही ।
अदृश्य शक्ति अदृश्य शक्ति !!! ये अदृश्य शक्ति क्या है । खेतो से थक हार कर लौटे राधेलाल ने अपने बापू से पुछा । अरे अदृश शक्ति यानि बहुत बड़ी ताक़त जो दिखाई नही देती । पर सारी चीजों को वो हो चलाती है । (नेता जी को वोट दो । बटन दाबो बाल्टी पे । बाल्टी को जो वोट देगा उसको पानी मिलेगा भरपूर चुनाव चिन्ह बाल्टी दीनाजी की बाल्टी हम सबकी बाल्टी प्रचार की गाड़ी घुर घुर शोर मचाती तीन चार राउंड लगाकर धूल उडाती चली गई ।)
आपके लोक प्रिय प्रत्याशी दीनाजी की आम सभा शाम सात बजे बस स्टेंड पर । चुनाव चिन्ह बाल्टी ।( प्रचार की गाड़ी में बैठे श्यामूं ने कहा बहुत हो गई बाल्टी बाल्टी बाल्टी अब बाटली बोले तो बोतल ला । गला दुख रहा है भाई )
अदृश्य शक्ति अदृश्य शक्ति
रही है अदृश्य शक्ति
पाँच
साल में दिखती है
अदृश्य
शक्ति अदृश्य शक्ति
अद्भुत शक्ति अद्भुत शक्ति
अदृश्य
शक्ति अदृश्य शक्ति
सारी पुलिस फोर्स उमरानाला में
रुकता नही फ़िर काम रे
चाकू
चले छुरी चले
इससे
इनको क्या काम रे
फ़िर
भी देखो सब
ठीक
ठाक ही चल रहा है
ओबामा भारत आने को मचल रहा है
अदृश्य शक्ति अदृश्य शक्ति
अद्भुत शक्ति अद्भुत शक्ति
अदृश्य
शक्ति अदृश्य शक्ति sss
(समापन किस्त अगली कड़ी में ओबामा रहे हैं उमरानाला )

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

जनतंत्र का डमरू जनतंत्र का जंतर

"जनतंत्र का डमरू जनतंत्र का जंतर "
आबाजी (दादाजी)

चुनाव के रंग बिरंगे इस महा पर्व में उमरानाला गाँव की गलियां चुनावों के रंग में गुलज़ार है। वोट कहानी जो इस ब्लॉग पर विधानसभा चुनाव २००८ के समय शुरू हुई थी ...उसके विस्तार का माकूल समय आ गया है । उमरानाला की गलियों में यहाँ दिल्ली से बैठकर चुनाव उसके हर रंग को देखने की एक छोटी सी कोशिश है ..."जनतंत्र का डमरू जनतंत्र का जंतर ...."आशाएं ,उम्मीदें ,हम सबके ख्वाब चुनाव के समय जैसे इन्हे नए पंख मिल जाते हैं । दीवारों पर नारे पोस्टर बैनर पार्टियों के घोषणा पत्र । उमरानाला में बचपन से ही चुनाव के इस माहौल को करीब से देखा और महसूस किया है ।
बड़े बड़े नेताओं की जन सभाओ को देखा । गाँव के भोले भाले सपने भी देखे । आज जैन दादाजी की याद आ रही है । जिन्हें हम सभी प्यार से " आबाजी " कहते थे । मराठी में दादा के लिए आबा शब्द का प्रयोग होता है । चुनाव के वक्त जैन दादाजी की दवाईयों की दुकान में अखबार की तादात बढ़ जाती थी ...वो
पढने के बेहद शौकीन थे । अख़बार पत्रिकाएं रेडियो टेलिविज़न चुनाव की हर ख़बर पर वो पैनी नज़र रखते थे ।
उनका एक विशेष दल से लगाव था । उनकी सोच में छोटे बड़े हर मुद्दे होते थे । लोगो की भीड़ ...छोटे बड़े नेताओं का जमावडा चाय की चुस्कियां और चुनाव के हर रंग । देश कहाँ जा रहा है ... गर्मियों के समय रात में खाने के बाद मैं अक्सर उनकी राजनैतिक चर्चाओं का हिस्सा बन जाता था ।
एक बार उन्होंने कहा था ...हमारे देश में इलेक्शन नही सलेक्शन होना चाहिएएक दल विशेष से लगाव होने के बावजूद वो उम्मीदवार की व्यक्तिगत छबी को हमेशा ध्यान में रखते थे ।
गाँव की गलियों में सब कुछ बदल रहा है । चुनाव भी बदले ...ठप्पा ईवीएम मशीन में बदल गया । बटन दबाकर नेताओं की तकदीरों के फैसले होने लगे हैं ... लेकिन आज भी चुनाव और उसको लेकर उत्साह जस का तस् है । हमारे गाँव में अधिकांश लोग कृषि से जुड़े हैं । खेतों में खलियानों से चुनाव की फिजा बहती है । "जनतंत्र का डमरू जनतंत्र का जंतर "में हम हमारे देश के महान लोकतंत्र को उमरानाला की इन्ही फिजाओ से महसूस करने की कोशिश करेंगे । उमरानाला पोस्ट को एक साल पूरे हो गए हैं । और अब लगता है ...जैसे मेरा यह छोटा सा गाँव महज एक भूगोल नही है ...इसका विस्तार हो चुका है । उमरानाला ग्लोबल बन गया है । जिसके सीमांत अब लकीरों में नही ..बल्कि हम सब के भीतर कहीं न कहीं बसते हैं !!!