शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

मोतीराम (समापन किस्त ) वोट कहानी

मोतीराम को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव चिन्ह सीढ़ी मिल गया । उमरानाला में साइन बोर्ड बैनर दुकानों के बोर्ड आदि बनने वाले पेंटर सागर ने मोतीराम के लिए चुनावी नारा /स्लोगन बनाया "काम करेगी इतना सीढ़ी याद रखेगी अगली पीढी " और... काम करेगी इतना सीढ़ी के जयघोष के साथ सभी तूफानी चुनाव प्रचार में जुट गए । केशव वकील ने मोतीराम के लिए पुरी चुनावी रणनीति तैयार कर रखी थी । जैसे मोतीराम को कब और कहाँ प्रचार के लिए जाना है । अख्तर टेलर ने भी अपनी दुकान पर कुछ दिनों के लिए टला जड़ दिया । पूरे प्रचार के दौरान केशव और अख्तर मोतीराम के साथ ही रहते।
इलाके में मोतीराम की चुनावी लहर चल निकली । एक लहर पूरे इलाके में बह रही थी । मोतीराम के नाम से अख़बार भी रंगने लगे। अख़बार में ख़ुद की ख़बरों को देख कर मोतीराम को अपने आप पर हैरानी होती थी । केशव बड़ी समझदारी से नेताजी के लिए चुनावी बिसात पर चाले चल रहा था । एक शाम छिंदवाडा गल्ला मंडी में व्यापारियों के बड़े नेता भज्जुमल की फूलछाप पार्टी के उम्मीदवार और प्रदेश के मंत्री चंदरलाल से कहा सुनी हो गई । भज्जुमल की इज्ज़त पूरा व्यापारी समाज करता था । भज्जुमल की एक आवाज़ पर व्यापारियों के नोट और वोट किसी भी उम्मीदवार का समर्थन करते थे । मंत्री चंदरलाल ने भज्जू को सरे आम अपमानित करके एक तरह से मुसीबत मोल ले ली । केशव वकील ने उसी रात गल्लामंडी में मोतीराम की चुनावी सभा करवाई । भज्जू लाल पूरे व्यापारियों के साथ मोतीराम के पक्ष में आ गए ।
व्यापारियों के मोतीराम के समर्थन में आगे आ जाने से फूलछाप और हाथ के निशान वाली बड़ी पार्टियों में चिंता की लकीरे बढ़ गई । मोतीराम की लोकप्रियता बढती जा रही थी .यही बात उसके विरोधियों को परेशान करने लगी । उमरानाला में तो जैसे बड़ी पार्टियों के लिए काम करने वालों का अकाल सा पड़ गया । इक्की दुक्की सभाओं को छोड़कर बड़ी पार्टियों की चुनावी सभा भी इलाके में नही हो रही थी । मोतीराम के खिलाफ कोई मुद्दा उनको नही मिल पा रहा था । मोतीराम के खिलाफ मुद्दा मिलता भी तो कैसे ? मोती तो एक सीधा साधा गरीब आदमी था ।
लेकिन प्यार और ज़ंग में सबकुछ जायज के सिद्धांत पर काम करते हुए विरोधी पार्टियों ने मोतीराम के खिलाफ झूठ का पुलिदा खोलना शुरू कर दिया । मोतीराम के चरित्र पर विरोधी सवाल उठाने लगे । दरअसल ,मोतीराम के चुनाव प्रचार में उमरानाला की सरपंच पंखी बाई उसके साथ साथ घूम रही थी । पंखी और मोती के रिश्ते को लेकर झूठे पर्चे जगह जगह बाटे जाने लगे । मोती और पंखी का रिश्ता क्या है ? मोतीराम पंखी शर्म करो के नारे दीवारों पर रंगने लगे । मोतीराम इस तरह के झूठे आरोपों से काफी आहत हुआ .लेकिन केशव वकील और ख़ुद पंखी ने उसे समझाया राजनीति में तो यही सब होता है .तुम केवल चुनाव को देखो और सोचो। उन उम्मीदों को देखो सोचो जो लोगो ने तुमसे लगा रखी है । चुनाव प्रचार दिन भाई दिन गन्दा होने लगा । मोतीराम बहुत सीधा और सरल आदमी था । दुष् प्रचार की गंदगी उसे लगातार आहत कर रही थी । लेकिन लोगो की उम्मीदें उसे इस संघर्ष में लड़ने का हौसला दे रही थी । मोतीराम जीत की तरफ तेज़ी से बढ़ रहा था । उसके नाम की लहर चल रही थी । मोतीराम के कई रिश्तेदार जो मुफलिसी में उससे कन्नी काट लेते थे .वो भी उसके पास आने लगे थे । मोतीराम को अपनी ताकत का एहसास होने लगा था ।
चुनाव प्रचार का शोर खत्म हो गया । मोतीराम को पूरे प्रचार के दौरान विरोधियों द्वारा पंखी का नाम उछालना सालता रहा। उसने पंखी से इस बात के लिए क्षमा भी मांगी .और उससे विवाह का प्रस्ताव भी रखा। मतदान से ठीक एक दिन पहले उसने पंखी से शादी कर ली । केशव वकील ने और अख्तर ने उसका पूरा साथ दिया । मोतीराम ने पंखी से कहा ये शादी मैं किसी मजबूरी में नही कर रहा हूँ । पंखी उसकी ईमानदारी की कायल थी । उसने उसे जिंदगी की हर लडाई साथ में लड़ने का वचन दिया ।
और मतदान का दिन गया । मोतीराम के पक्ष में भारी मतदान हुआ । मतगणना वाले दिन भोर में ही मोतीराम और पंखी बजरंगबली के मन्दिर में पूजा अर्चना के बाद अपने दल बल के साथ छिंदवाडा रवाना हो गया । दोपहर तक परिणाम आ गए मंत्री चंदरलाल की ज़मानत जब्त हो गई .मोतीराम भारी मतों से विजयी हुआ । इलाके में मोतीराम की जीत का जश्न लोग मनाने लगे । वकील केशव ने मोतीराम से कहा प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा आई है । तुम चाहो तो मंत्री भी बन सकते हो ।
मोतीराम ने विनम्रता से कहा जैसा जनता चाहे ,ये जनता की जीत है । और उमरानाला बस स्टेंड से एलान किया की जनता की सेवा के लिए उचित दल की सरकार बने हम यही चाहते है । और क्षेत्र के विकास के लिए हम सरकार में भी शामिल होंगे । मोतीराम की जयकार होने लगी । गाँव की भोली जनता मिनिस्टर मोती का सपना देखने लगी ...(समाप्त)
(तस्वीर :आर के लक्ष्मण कामन मेन )

बुधवार, 19 नवंबर 2008

मोतीराम भाग दो (वोट कहानी )

मोतीराम ने सोचा रात गई बात गई ! चुनाव लड़ने की बात उसके जीवन में नई पहेली थी । हालाँकि उसे नेतागिरी करना अच्छा लगता था लोग उसे "नेताजी" बोले उसे यह भी पसंद था । लेकिन चुनाव लड़ना वो भी एम् एल (विधायक) का "तौबा तौबा "। इधर केशव वकील भी जैसे जिद पर अडे थे उन्होंने मोतीराम को चुनाव लड़वाने के लिए कई तगडी फील्डिंग कर दी थी । गाँव के ऐसे बुजुर्ग जिनकी बात मोतीराम कभी नही टालता था उनको केशव ने मना लिया था । उमरानाला के बुद्धिजीवी वर्ग भी इस बात के लिए उसका साथ दे रहा था कि क्यों न इस बार उम्मीदवार हमारे ही गाँव का हो ,जो हमारी उम्मीदें भोपाल विधानसभा में लेकर जाए । मोतीराम इस लिहाज से भी फिट उम्मीदवार था कि उसका हर पार्टी में निचले स्तर से ऊँचे स्तर तक कोई न कोई शुभचिंतक था । उस पर भी सबसे बड़ी बात यह कि मोतीराम का न कोई आगे था कोई पीछे ..हर लिहाज़ से एक उपयुक्त जनसेवक एक उपयुक्त नेता "नेताजी" !!
शाम होते होते पूरे गाँव में यह चर्चा आग कि तरह फ़ैल गई उनका अपना नेताजी मोतीराम चुनाव लड़ने वाला है । काफी मानमनुव्वल के बाद मोतीराम ने हामीं भर दी । अख्तर टेलर ने एक ही रात में पाँच जोड़े कुरते पैजामें सिलने का भरोसा वकील साहब को दे दिया । कुरते पैजामें के कपडे लेखराज वस्त्र भण्डार ने दिए । माधव जनरल स्टोर्स के सौजन्य से चार खादी के झोले भी आ गए । मोतीराम की बाह्य और आंतरिक साजसज्जा का ख्याल उसके सभी चाहने वालों ने बखूबी रखा । मियां की चाय की दुकान जिसमें मोतीराम काम करता था । उसके मालिक अब्दुल मियां ने चाय की दुकान के ऊपर का कमरा चुनाव कार्यालय के लिए दे दिया । साथ ही चाय नास्ता आदि भी प्रचार के दौरान अपनी तरफ से मुफ्त देने का भरोसा भी दिया ।
मोतीराम के चुनाव प्रचार के लिए गाड़ियों का इतेजाम देवाजी ने कर दिया । तय हुआ की मंगलवार के शुभ दिन नामांकन का पर्चा भरने चार ट्रक भरके लोग मोतीराम के साथ जायेंगे । मोतीराम के नाम से पर्चे बैनर झंडे पोस्टर के लिए भी पैसों का इंतजाम हो गया ।
लेट लतीफी के लिए मशहूर अख्तर टेलर ने वायदे के मुताबिक एक ही रात में पाँच जोड़े कुरते पैजामे सिलकर दे दिए। सबने अख्तर टेलर की चुटकियाँ ली । मोतीराम को भी हैरानी और हसी फूट पड़ी । कुरते पैजामें का ट्रायल लिया गया । मोतीराम को कुरता थोड़ा छोटा और टाइट लगा । उसने अख्तर से कहा लगता बिना पिए ही कपडे सिलकर दिए हैं । सब जमकर हसने लगे । बात को सम्हालते हुए अख्तर ने कहा अख्तर अब दारू चुनाव जीतने के बाद ही पीयेगा । इस चुहल से माहौल थोड़ा हल्का हो गया ।

कुलमिलाकर नेताजी जनता के वास्तविक जननेता बनकर उभरने लगे । इस सियासी कसरत की गूंज छिंदवाडा में भी गूंजने लगी । एक एक कर बड़े दलों से उमरानाला के पदाधिकारी अनुशासन हीनता के आरोप में निकाले जाने लगे । ब्लाक मुख्यालय मोहखेड़ से भी बड़े नेता मोतीराम के समर्थन में आगे आने लगे ।
और मंगलवार का शुभ दिन आ गया । गाँव के प्रसिद्ध "आंजनी" के हनुमान मन्दिर में पूजा अर्चना के साथ मोतीराम ने चुनाव अभियान का आगाज़ किया । सुबह सुबह मोतीराम की बस स्टेंड में चुनावी सभा भी हुई । जिसमें आस पास के गाँव के लोग भी आए । उमरानाला के इतिहास में ये अब तक की सबसे बड़ी चुनावी सभा थी । मोतीराम ने अपने भावुक उदबोधन में गाँव की जनता से अपील की और कहा "ये लडाई अब मेरी नही आप सबकी हैचुनाव में मैं नही आप सभी खड़े है.."
नामांकन का पर्चा भरने मोतीराम का हजूम छिंदवाडा रवाना हो गया । जगह जगह उसका स्वागत हुआ । क्षेत्र के लोगो की उम्मीदों का कारवां बढ़ने लगा । लोग इस हजूम में बड़ी पार्टियों को छोड़कर शामिल होने लगे । ये समूह की अंतरात्मा की आवाज़ थी जो अपना नेता ख़ुद बनाना चाहती थी । नामांकन का पर्चा कलेक्ट्रेट में उसने दाखिल किया । और अपने चुनाव चिन्ह के रूप में मोतीराम ने सीढ़ी को पसंद किया । चुनाव चिन्ह सीढ़ी उसे पूरे क्षेत्र की तरक्की की सीढ़ी लगी ।नेताजी के साथ आम जनता भी आशाओं की सीढ़ी पर चढ़ने और मैदान फतेह करने का ख्वाब बुनने लगी ...(जारी है )
(तस्वीर :आर के लक्ष्मण कामन मेन )

गुरुवार, 13 नवंबर 2008

मोतीराम: वोट कहानी (एक )

खादी का कुरता सिर पर सफ़ेद टोपी ...मोतीराम को उमरानाला का बच्चा बच्चा "नेताजी" के नाम से जानता था । मोतीराम का के पास अपना कहने के लिए कुछ भी नही था । कोई सगा सम्बन्धी नही न कोई नातेदार न ही रिश्तेदार ..शायद यही वजह भी थी कि वो फुल टाइम नेतागिरी करने लगा । लोगो का गम अपने दिलो दिमाग पर लेना उसका पैदाईशी शौक था । गाँव में जनतंत्र का वो ही एक मात्र झंडाबदार है उसे लगता । समाज सेवा करना । लोगो के सुख दुःख में बढ़चढ़कर भाग लेना उसे भाता , चुनाव से पहले इलाके में उसकी कद्र बढ़ जाती । बड़ी बड़ी पार्टियों के लीडरों के बीच उसकी पूछ परख बढ़ जाती ।
मोतीराम जैसे शख्स किसी पार्टी से बंध के नही रह सकते ..गाँधी टोपी से आर एस एस की निक्कर तक, हरी समाजवादी टोपी से लालक्रान्ति तक मोतीराम ने हर तरह का चोला पहना । कभी किसी दल का दिल नही दुखाया मोतीराम अपने आप में सर्वदलीय व्यक्ति थे । भारत में साझा सरकारों की शुरुआत जब भी हुई हो लेकिन मोतीराम भविष्य की राजनीति को काफ़ी पहले ही समझ चुके थे । उनकी पहल पर ही गाँव में बहुदलीय लोगो ने मिलकर गाँव की शिक्षित महिला पंखी बाई को सरपंच बनवाया ।
मोतीराम चाय की दुकान पर काम करता था । गाँव के लोगो तक अपने विचार और राजनैतिक संबोधन वो इसी चाय की दुकान से संप्रेषित करता था । मिया की चाय की दुकान में लोगो का जमघट सिर्फ़ मोतीराम की वजह से ही लगता । कुछ लोगो की नज़र में नेताजी सरफिरे भी थे तो कुछ लोग मोतीराम को मज़मा लगाने वाले से ज़्यादा नही समझते थे । क्षेत्रीय ,प्रांतीय ,राष्ट्रिय अंतर्राष्ट्रीय हर मुद्दे पर उससे चर्चा करते । चाय के झूठे कप प्लेट धोने के आलावा वो दिनभर पूरे अखबार को भी एक तरह से पी जाता था । कुछ लोग ख़ुद खबरे पढने के बजाय मोतीराम से खबरें पूछना पसंद करते थे । वो चाय के साथ साथ लोगो को बड़े दिलचस्प अंदाज़ में खबरे बताता ... कभी कभी वरिष्ठ संपादक की भांति वो ख़बरों पर अपनी टीप भी देता ।
बहरहाल , गाँव में विधान सभा चुनाव की हलचल शुरू हो चुकी थी ।चुनाव के समय मोतीराम चाय की दुकान से छुट्टी ले लेता । और जम कर चुनाव प्रचार करता । मोतीराम अपने महारथी दिमाग से चुनाव का गणित बैठाल लेता । और वो उसी दल का प्रचार करता जो जीतने की हालत में होता । " नेता जी "के पास नेताओं की आवा जाही होने लगी । मोतीराम केवल चुनाव के समय ही लोगो को याद आ ता है एक रात केशव वकील ने उससे कहा । मोतीराम कुछ सोचो ? तुम ख़ुद क्यों नही चुनाव लड़ते । मैं और चुनाव ..मोतीराम को हसी आई । लेकिन वकील साहब ने कहा मोतीराम सोच के देखो अगर तुम विधायक बन गए तो इस गाँव की हालत बदल जायेगी । वकील साहब उसे एक एक कर चुनाव लड़ने से होने वाले सार्वजानिक फायदे गिनवाने लगे । मोतीराम कुछ बातें समझ पा रहा था कुछ बातें उसे समझ नही आ रही थी । चुनाव में तो खर्चा भी बहुत ज्यादा होता है । मैं ठहरा भूखा नंगा आख़िर मैं क्या दम लगा के चुनाव लडूंगा उसने वकील साहब से कहा .....(जारी है)
(तस्वीर :आर के लक्ष्मण कामन मेन )

शनिवार, 8 नवंबर 2008

देव उठनी ग्यारस

उमरानाला में नाका मोहल्ला है । मेन रोड और रेलवे पुल के आस पास रहने वाले खेतिहर लोगो का मोहल्ला । इस मोहल्ले में राजा रग्घू जी भोसले के शासन के समय की एक पुरानी कचहरी और शिव मन्दिर भी है । सर्दियों के मौसम में इस मोहल्ले की आबो हवा देखते ही बनती है । मीलों तक फैले खेतो में लहलहाती फसलें पानी की ओलाई (सिचाई ) से चलने वाली शीतल हवाएं ...एक अदभुत वातावरण का निर्माण करती हैं । किसी समय गर्मियों के समय राजा रग्घू जी भोसले की ग्रीष्म कालीन राजधानी उमरानाला (इकल बिहरी ) ही हुआ करती थी । राजा को नाका मोहल्ले से विशेष लगाव रहा । और यहाँ शिव मन्दिर का निर्माण भी उन्होंने करवाया ।
कार्तिक मास में राजा रग्घू जी भोसले यहाँ शिव आराधना में लीन रहते थे । और देव उठनी ग्यारस (एकादशी) में निर्जला व्रत भी रखते थे । साथ ही इस पर्व पर यहाँ विविध धार्मिक आयोजन भी होते थे । उनमे एक दिवसीय हरीनाम सप्ताह का आयोजन भी होता था । इसी परम्परा में पिछले कई वर्षों से नाका मोहल्ले में देवउठनी एकादशी पर हर साल "हरी नाम सप्ताह " का आयोजन किया जाता है । इसमें पूरे गाँव की सहभागिता होती है ।
हरिनाम सप्ताह में विट्ठल रुकमणि (कृष्ण रुकमणि ) का आराधन और भगवत गीता का पाठ किया जाता है । रात में धार्मिक नाटक का मंचन भी होता है जिसकी तैयारी एक महीने पहले से शुरू हो जाती है । इन नाटकों में हर साल विवधता होती है जैसे " राम हनुमान संग्राम "," कृष्ण अर्जुन संग्राम" , " राम लखन युद्ध " आदि रात भर चलने वाले नाटक में मोहल्ले के युवा ही अभिनय करते हैं दर्शको की रूचि के लिए बीच बीच में हास्य आदि के रंग भी भरे होते हैं । कभी कभी फिल्मी गानों पर भी देवता (खास तौर पर नारद मुनि को नाचते हुए देखा जा सकता है । इन नाटकों में ग्राम्य संस्कृति का दर्शन होता है । नाटक की शुरुआत गणेश पूजन से होती है । "देवा पूरण करो मनकामना देवा लम्बोधर गिरजा नंदना ..." आरती से नाटक का श्रीगणेश होता है ।
साथ ही मोहल्ले के हर घर से द्रव्य ,रुपयों का चंदा जमा किया जाता है । दही लाही के प्रसाद के साथ भंडारे का भी आयोजन होता है .जिसमे सभी लोग एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं ।
देवउठनी एकादशी में घरों में तुलसी विवाह भी किया जाता है । जिसमें गन्ने (ईख) ,ज्वार के द्बारा आँगन में मंडप बनाया जाता है । बेर ,आंवले ,चने की भाजी और बैगन भी चढाया जाता है । दिलचस्प बात है कि घरों में देवसोनी ग्यारस से लेकर देव उठनी ग्यारस तक बैगन नही खाया जाता है । देवउठनी एकादशी के बाद ही बैगन की सब्जी लोग खाना शुरू करते हैं । इस पर्व को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है । तुसली जी को विष्णु प्रिया के रूप में भी जाना जाता है । "बेर भाजी आंवले उठो देव सांवरे ..." गीत भी तुलसी विवाह में गाया जाता है ।
पूरे गाँव में एक उत्सव का माहौल होता है । आख़िर देवता को आराम फरमाने के बाद नींद से जगाने का काम भी भक्तो का ही तो होता है ....

शनिवार, 1 नवंबर 2008

आर्ट ऑफ़ लिविंग

उमरा नदी में हालाँकि पानी का प्रवाह अब धीमा हो गया है । नवम्बर के आस पास उमरा नदी सूखने लगती है । लेकिन इन दिनों उमरानाला की फिजाओं में मैंने एक अनोखा प्रवाह महसूस किया । इस प्रवाह में लगा कि जैसे एक मासूम सी हसीं पूरी हवाओं में तैर रही है । एक अनोखी तरंग ...एक आध्यत्मिक प्रवाह जो मन को सकून दे रहा है । कृष्ण की मुरली की लहर की तरह ...वीणा या सितार की तरह गुंजित । एक दिव्य गंध जो रूह को स्पंदित करती है । मन को आनन्दित करती है । एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह । जीवन की कला को सीखते मेरे गाँव के बाशिंदे ... श्री श्री रविशंकर का ए ओ एल हमारे गाँव में एक नवीन अनुभूति है ।
उमरानाला की एक अनोखी विशेषता यहाँ के लोगो का अध्यात्म के प्रति रुझान भी है। समय समय पर संतों आध्यत्मिक गुरुओ के फिरके उनको मानने वाले मुरीद आध्यत्मिक चेतना को भरते रहते हैं । ये जानना दिलचस्प होगा की उमरानाला में इस तरह के अभियान हमेशा शिक्षकों की जानिब से ही शुरू हुए । जैसे मैं बहुत पहले की बात करूँ तो हमारे इस छोटे से गाँव में सत्य साईं सेवा समित की शुरुआत जोशी शिक्षक द्वारा की गई । गाँव में सत्य साईं सेवा समिति के माध्यम से संस्कारों के सृजन सेवा के भावों को भरने का काम बड़े पैमाने पर किया गया । आस पास के छोटे गाँव को गोद लेकर वहां पर काम किए गए । हर गुरुवार साईं भजनों में बचपन में मैं भी शामिल होता था ।
सेवा समिति में अधिकांश सेवक सरकारी कर्मचारी थे । उनके तबादले होते रहे और साईं सेवा समिति का विकल्प बनके हमारे गाँव में एक नया आध्यत्मिक अभियान "गायत्री परिवार " के रूप में आया । गाँव में इसको लाने वाले भी शिक्षक कोठेकर और शिक्षक एस आर गावंडे थे । गायत्री परिवार के माध्यम से वैदिक क्रिया कलापों का आगाज़ हुआ । इस बीच श्री अरविंदो , आचार्य रजनीश, महर्षि महेश योगी आदि गुरुओं के अनुयायी हमारे गाँव के लोग बने । फ़िर गाँव के ही शिक्षक बी आर सोनी आसाराम बापू की योग वेदांत समिति से गाँव को परचित कराया । इस तरह हर दशक में हमारे गाँव में एक आध्यत्मिक गुरु का सरमाया बना रहा ।
सम्प्रति हमारे गणित के टीचर ए एन सूर्यवंशी के माध्यम से आर्ट ऑफ़ लिविंग की शुरुआत हमारे गाँव में हो चुकी है । सुदर्शन क्रिया को सीखने के लिए लोग अल सुबह उठकर जैन धर्मशाला में जाते हैं । इस क्रिया को सिखाने के लिए गाँव में छिंदवाडा से ए ओ एल के प्रशिक्षक मनीष शर्मा ,तुषार कान्त गुप्ता व् कृष्णोत्तम राजपूत आते हैं। पिछले दो साल से हर माह यहाँ सुदर्शन क्रिया का बेसिक कोर्स का प्रिशक्षण दिया जा रहा है ।
दरअसल ,सुर्दशन क्रिया एक सहज और सरल क्रिया है । जो जीवन को जीने का नया नजरिया देती है । "सु" (अच्छा ) "दर्शन " इस क्रिया के माध्यम से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाता है । और नाम के मुताबिक ये क्रिया हमें सद दर्शन सिखाती है ।भीतर की नकारात्मकता को खत्म कर जीवन को उत्सव बना देती है ।
शिक्षक समाज को भी दिशा देता है । उमरानाला में इस तरह के अभियानों की शुरुआत शिक्षको के माध्यम से होना इस बात की उम्दा नज़ीर है । श्री श्री की मासूम मुस्कान सहज ही हमें आकर्षित करती है । एक भोले से बच्चे की तरह उनका मुस्काना बेहद खूबसूरत लगता है । मेरा यकीन है यदि हम बच्चे बन जाए तो हमारे बहुत सी तकलीफे दूर हो सकती है ।
हाँ ! चलते चलते एक बात आर्ट ऑफ़ लिविंग के सेंटर के मुख्या द्वार पर लिखी ये पंक्तियाँ "पुट युअर शूज़ एंड इगो हियर " । जीवन की कला को सीखने के लिए अंहकार तो छोड़ना ही पड़ेगा ....