बुधवार, 19 नवंबर 2008

मोतीराम भाग दो (वोट कहानी )

मोतीराम ने सोचा रात गई बात गई ! चुनाव लड़ने की बात उसके जीवन में नई पहेली थी । हालाँकि उसे नेतागिरी करना अच्छा लगता था लोग उसे "नेताजी" बोले उसे यह भी पसंद था । लेकिन चुनाव लड़ना वो भी एम् एल (विधायक) का "तौबा तौबा "। इधर केशव वकील भी जैसे जिद पर अडे थे उन्होंने मोतीराम को चुनाव लड़वाने के लिए कई तगडी फील्डिंग कर दी थी । गाँव के ऐसे बुजुर्ग जिनकी बात मोतीराम कभी नही टालता था उनको केशव ने मना लिया था । उमरानाला के बुद्धिजीवी वर्ग भी इस बात के लिए उसका साथ दे रहा था कि क्यों न इस बार उम्मीदवार हमारे ही गाँव का हो ,जो हमारी उम्मीदें भोपाल विधानसभा में लेकर जाए । मोतीराम इस लिहाज से भी फिट उम्मीदवार था कि उसका हर पार्टी में निचले स्तर से ऊँचे स्तर तक कोई न कोई शुभचिंतक था । उस पर भी सबसे बड़ी बात यह कि मोतीराम का न कोई आगे था कोई पीछे ..हर लिहाज़ से एक उपयुक्त जनसेवक एक उपयुक्त नेता "नेताजी" !!
शाम होते होते पूरे गाँव में यह चर्चा आग कि तरह फ़ैल गई उनका अपना नेताजी मोतीराम चुनाव लड़ने वाला है । काफी मानमनुव्वल के बाद मोतीराम ने हामीं भर दी । अख्तर टेलर ने एक ही रात में पाँच जोड़े कुरते पैजामें सिलने का भरोसा वकील साहब को दे दिया । कुरते पैजामें के कपडे लेखराज वस्त्र भण्डार ने दिए । माधव जनरल स्टोर्स के सौजन्य से चार खादी के झोले भी आ गए । मोतीराम की बाह्य और आंतरिक साजसज्जा का ख्याल उसके सभी चाहने वालों ने बखूबी रखा । मियां की चाय की दुकान जिसमें मोतीराम काम करता था । उसके मालिक अब्दुल मियां ने चाय की दुकान के ऊपर का कमरा चुनाव कार्यालय के लिए दे दिया । साथ ही चाय नास्ता आदि भी प्रचार के दौरान अपनी तरफ से मुफ्त देने का भरोसा भी दिया ।
मोतीराम के चुनाव प्रचार के लिए गाड़ियों का इतेजाम देवाजी ने कर दिया । तय हुआ की मंगलवार के शुभ दिन नामांकन का पर्चा भरने चार ट्रक भरके लोग मोतीराम के साथ जायेंगे । मोतीराम के नाम से पर्चे बैनर झंडे पोस्टर के लिए भी पैसों का इंतजाम हो गया ।
लेट लतीफी के लिए मशहूर अख्तर टेलर ने वायदे के मुताबिक एक ही रात में पाँच जोड़े कुरते पैजामे सिलकर दे दिए। सबने अख्तर टेलर की चुटकियाँ ली । मोतीराम को भी हैरानी और हसी फूट पड़ी । कुरते पैजामें का ट्रायल लिया गया । मोतीराम को कुरता थोड़ा छोटा और टाइट लगा । उसने अख्तर से कहा लगता बिना पिए ही कपडे सिलकर दिए हैं । सब जमकर हसने लगे । बात को सम्हालते हुए अख्तर ने कहा अख्तर अब दारू चुनाव जीतने के बाद ही पीयेगा । इस चुहल से माहौल थोड़ा हल्का हो गया ।

कुलमिलाकर नेताजी जनता के वास्तविक जननेता बनकर उभरने लगे । इस सियासी कसरत की गूंज छिंदवाडा में भी गूंजने लगी । एक एक कर बड़े दलों से उमरानाला के पदाधिकारी अनुशासन हीनता के आरोप में निकाले जाने लगे । ब्लाक मुख्यालय मोहखेड़ से भी बड़े नेता मोतीराम के समर्थन में आगे आने लगे ।
और मंगलवार का शुभ दिन आ गया । गाँव के प्रसिद्ध "आंजनी" के हनुमान मन्दिर में पूजा अर्चना के साथ मोतीराम ने चुनाव अभियान का आगाज़ किया । सुबह सुबह मोतीराम की बस स्टेंड में चुनावी सभा भी हुई । जिसमें आस पास के गाँव के लोग भी आए । उमरानाला के इतिहास में ये अब तक की सबसे बड़ी चुनावी सभा थी । मोतीराम ने अपने भावुक उदबोधन में गाँव की जनता से अपील की और कहा "ये लडाई अब मेरी नही आप सबकी हैचुनाव में मैं नही आप सभी खड़े है.."
नामांकन का पर्चा भरने मोतीराम का हजूम छिंदवाडा रवाना हो गया । जगह जगह उसका स्वागत हुआ । क्षेत्र के लोगो की उम्मीदों का कारवां बढ़ने लगा । लोग इस हजूम में बड़ी पार्टियों को छोड़कर शामिल होने लगे । ये समूह की अंतरात्मा की आवाज़ थी जो अपना नेता ख़ुद बनाना चाहती थी । नामांकन का पर्चा कलेक्ट्रेट में उसने दाखिल किया । और अपने चुनाव चिन्ह के रूप में मोतीराम ने सीढ़ी को पसंद किया । चुनाव चिन्ह सीढ़ी उसे पूरे क्षेत्र की तरक्की की सीढ़ी लगी ।नेताजी के साथ आम जनता भी आशाओं की सीढ़ी पर चढ़ने और मैदान फतेह करने का ख्वाब बुनने लगी ...(जारी है )
(तस्वीर :आर के लक्ष्मण कामन मेन )

2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत दिलचस्प पोस्ट...मजा आ गया पढ़ कर...अगली किश्त का इंतिजार है...
नीरज

Chhindwara chhavi ने कहा…

अमिताभ भाई आपकी कल्पनाशीलता का क्या कहना ...

सच कहूँ ... आपको पूरा ब्लॉग किताब की शक्ल में लाना चाहिए ...

बधाई ...

रामकृष्ण