गुरुवार, 13 नवंबर 2008

मोतीराम: वोट कहानी (एक )

खादी का कुरता सिर पर सफ़ेद टोपी ...मोतीराम को उमरानाला का बच्चा बच्चा "नेताजी" के नाम से जानता था । मोतीराम का के पास अपना कहने के लिए कुछ भी नही था । कोई सगा सम्बन्धी नही न कोई नातेदार न ही रिश्तेदार ..शायद यही वजह भी थी कि वो फुल टाइम नेतागिरी करने लगा । लोगो का गम अपने दिलो दिमाग पर लेना उसका पैदाईशी शौक था । गाँव में जनतंत्र का वो ही एक मात्र झंडाबदार है उसे लगता । समाज सेवा करना । लोगो के सुख दुःख में बढ़चढ़कर भाग लेना उसे भाता , चुनाव से पहले इलाके में उसकी कद्र बढ़ जाती । बड़ी बड़ी पार्टियों के लीडरों के बीच उसकी पूछ परख बढ़ जाती ।
मोतीराम जैसे शख्स किसी पार्टी से बंध के नही रह सकते ..गाँधी टोपी से आर एस एस की निक्कर तक, हरी समाजवादी टोपी से लालक्रान्ति तक मोतीराम ने हर तरह का चोला पहना । कभी किसी दल का दिल नही दुखाया मोतीराम अपने आप में सर्वदलीय व्यक्ति थे । भारत में साझा सरकारों की शुरुआत जब भी हुई हो लेकिन मोतीराम भविष्य की राजनीति को काफ़ी पहले ही समझ चुके थे । उनकी पहल पर ही गाँव में बहुदलीय लोगो ने मिलकर गाँव की शिक्षित महिला पंखी बाई को सरपंच बनवाया ।
मोतीराम चाय की दुकान पर काम करता था । गाँव के लोगो तक अपने विचार और राजनैतिक संबोधन वो इसी चाय की दुकान से संप्रेषित करता था । मिया की चाय की दुकान में लोगो का जमघट सिर्फ़ मोतीराम की वजह से ही लगता । कुछ लोगो की नज़र में नेताजी सरफिरे भी थे तो कुछ लोग मोतीराम को मज़मा लगाने वाले से ज़्यादा नही समझते थे । क्षेत्रीय ,प्रांतीय ,राष्ट्रिय अंतर्राष्ट्रीय हर मुद्दे पर उससे चर्चा करते । चाय के झूठे कप प्लेट धोने के आलावा वो दिनभर पूरे अखबार को भी एक तरह से पी जाता था । कुछ लोग ख़ुद खबरे पढने के बजाय मोतीराम से खबरें पूछना पसंद करते थे । वो चाय के साथ साथ लोगो को बड़े दिलचस्प अंदाज़ में खबरे बताता ... कभी कभी वरिष्ठ संपादक की भांति वो ख़बरों पर अपनी टीप भी देता ।
बहरहाल , गाँव में विधान सभा चुनाव की हलचल शुरू हो चुकी थी ।चुनाव के समय मोतीराम चाय की दुकान से छुट्टी ले लेता । और जम कर चुनाव प्रचार करता । मोतीराम अपने महारथी दिमाग से चुनाव का गणित बैठाल लेता । और वो उसी दल का प्रचार करता जो जीतने की हालत में होता । " नेता जी "के पास नेताओं की आवा जाही होने लगी । मोतीराम केवल चुनाव के समय ही लोगो को याद आ ता है एक रात केशव वकील ने उससे कहा । मोतीराम कुछ सोचो ? तुम ख़ुद क्यों नही चुनाव लड़ते । मैं और चुनाव ..मोतीराम को हसी आई । लेकिन वकील साहब ने कहा मोतीराम सोच के देखो अगर तुम विधायक बन गए तो इस गाँव की हालत बदल जायेगी । वकील साहब उसे एक एक कर चुनाव लड़ने से होने वाले सार्वजानिक फायदे गिनवाने लगे । मोतीराम कुछ बातें समझ पा रहा था कुछ बातें उसे समझ नही आ रही थी । चुनाव में तो खर्चा भी बहुत ज्यादा होता है । मैं ठहरा भूखा नंगा आख़िर मैं क्या दम लगा के चुनाव लडूंगा उसने वकील साहब से कहा .....(जारी है)
(तस्वीर :आर के लक्ष्मण कामन मेन )

2 टिप्‍पणियां:

makrand ने कहा…

bahut accha vyang
regards

Amit K Sagar ने कहा…

हमेशा की तरह एक और बेहद उम्दा रचना के साथ-साथ आपको जन्म-दिन की ढेरों शुभकामनायें. जन्म-दिन मुबारक हो बिग बी.
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लव यू.
अमित के. सागर