उमरानाला में नाका मोहल्ला है । मेन रोड और रेलवे पुल के आस पास रहने वाले खेतिहर लोगो का मोहल्ला । इस मोहल्ले में राजा रग्घू जी भोसले के शासन के समय की एक पुरानी कचहरी और शिव मन्दिर भी है । सर्दियों के मौसम में इस मोहल्ले की आबो हवा देखते ही बनती है । मीलों तक फैले खेतो में लहलहाती फसलें पानी की ओलाई (सिचाई ) से चलने वाली शीतल हवाएं ...एक अदभुत वातावरण का निर्माण करती हैं । किसी समय गर्मियों के समय राजा रग्घू जी भोसले की ग्रीष्म कालीन राजधानी उमरानाला (इकल बिहरी ) ही हुआ करती थी । राजा को नाका मोहल्ले से विशेष लगाव रहा । और यहाँ शिव मन्दिर का निर्माण भी उन्होंने करवाया ।
कार्तिक मास में राजा रग्घू जी भोसले यहाँ शिव आराधना में लीन रहते थे । और देव उठनी ग्यारस (एकादशी) में निर्जला व्रत भी रखते थे । साथ ही इस पर्व पर यहाँ विविध धार्मिक आयोजन भी होते थे । उनमे एक दिवसीय हरीनाम सप्ताह का आयोजन भी होता था । इसी परम्परा में पिछले कई वर्षों से नाका मोहल्ले में देवउठनी एकादशी पर हर साल "हरी नाम सप्ताह " का आयोजन किया जाता है । इसमें पूरे गाँव की सहभागिता होती है ।
हरिनाम सप्ताह में विट्ठल रुकमणि (कृष्ण रुकमणि ) का आराधन और भगवत गीता का पाठ किया जाता है । रात में धार्मिक नाटक का मंचन भी होता है जिसकी तैयारी एक महीने पहले से शुरू हो जाती है । इन नाटकों में हर साल विवधता होती है जैसे " राम हनुमान संग्राम "," कृष्ण अर्जुन संग्राम" , " राम लखन युद्ध " आदि रात भर चलने वाले नाटक में मोहल्ले के युवा ही अभिनय करते हैं दर्शको की रूचि के लिए बीच बीच में हास्य आदि के रंग भी भरे होते हैं । कभी कभी फिल्मी गानों पर भी देवता (खास तौर पर नारद मुनि को नाचते हुए देखा जा सकता है । इन नाटकों में ग्राम्य संस्कृति का दर्शन होता है । नाटक की शुरुआत गणेश पूजन से होती है । "देवा पूरण करो मनकामना देवा लम्बोधर गिरजा नंदना ..." आरती से नाटक का श्रीगणेश होता है ।
साथ ही मोहल्ले के हर घर से द्रव्य ,रुपयों का चंदा जमा किया जाता है । दही लाही के प्रसाद के साथ भंडारे का भी आयोजन होता है .जिसमे सभी लोग एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं ।
देवउठनी एकादशी में घरों में तुलसी विवाह भी किया जाता है । जिसमें गन्ने (ईख) ,ज्वार के द्बारा आँगन में मंडप बनाया जाता है । बेर ,आंवले ,चने की भाजी और बैगन भी चढाया जाता है । दिलचस्प बात है कि घरों में देवसोनी ग्यारस से लेकर देव उठनी ग्यारस तक बैगन नही खाया जाता है । देवउठनी एकादशी के बाद ही बैगन की सब्जी लोग खाना शुरू करते हैं । इस पर्व को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है । तुसली जी को विष्णु प्रिया के रूप में भी जाना जाता है । "बेर भाजी आंवले उठो देव सांवरे ..." गीत भी तुलसी विवाह में गाया जाता है ।
पूरे गाँव में एक उत्सव का माहौल होता है । आख़िर देवता को आराम फरमाने के बाद नींद से जगाने का काम भी भक्तो का ही तो होता है ....
2 टिप्पणियां:
आपके पोस्ट से अच्छी जानकारी मिली। आख़िर देवता को आराम फरमाने के बाद नींद से जगाने का काम भी भक्तो का ही तो होता है .... वाह !!
सुंदर जानकारी और खूबसूरत रंगोली
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