सोमवार, 12 मई 2008

सूफी सिलसिले /उमरानाला की बात (१8)

मई का महीना उमरानाला तन्सरा ओर आस पास के गाँव के लिए एक विशेष अर्थ रखता है । दरअसल इस महीने की 16, १७ और १८ तारीखों को तन्सरामाल मे सूफी संत बाबा दीवाने शाह की दरगाह मे सालाना उर्स का आयोजन किया जाता है .बाबा कि दरगाह मे जियारत के लिए जाय रीन दूर दूर से आते हैं । कई सालों से ये पवित्र क्षेत्र साम्प्रदायिक सदभाव की अनूठी मिसाल है । छिन्दवाडा नागपुर मुख्य मार्ग पर ये पवित्र स्थल है । मानवीय प्रेम ओर मानव धर्म के संदेश को बाबा दीवाने शाह ने जन जन तक पहुँचाया .बाबा के बारे मे बताया जाता है ही बाबा अरब से अपने भाई के साथ भारत आए थे ...भारत कि तपोभूमि से बेहद प्रभावित होकर बाबा ईश्वर की खोज मे लीन हो गए . मोहखेड के विकासखंड के एतिहासिक स्थल देवगढ़ के जंगलों मे बाबा साहब ने ४० सालों तक घोर साधना ओर तपस्या की ,इसके उपरांत बाबा हमेशा के लिए तन्सरा मे ही आकर बस गए .बाबा का पुरा जीवन विलक्षण घटनाओं से परिपूर्ण रहा .बाबा के सानिध्य को पाने वाले गाँव के कई बुजर्ग आज भी उनके बारे मे बहुत सी बातें बताते है । तन्सरा मॉल से ही बाबा ने मानव प्रेम भाईचारे और सदभाव के संदेश को जन जन तक पहुँचाया .लोगो को तकलीफों से निजात दी ..साथ एक घने पेड़ की भांति पूरे क्षेत्र को अपने आध्यात्मिक साये से एक दिव्य शीतलता और शान्ति दी ।
बाबा ६-७ साल नागपुर मे भी रहे आज भी नागपुर मे 'दीवाने शाह की तकिया' नाम से एक मशहूर मोहल्ला है नागपुर मे रहते हुए महाराष्ट्र के अनेक संत बाबा के सानिध्य मे आए इन संतों मे संत तुकडोजी महाराज भी थे .वे बाबा के सादगी पूर्ण जीवन से बेहद प्रभावित थे उन्होंने बाबा की महिमा मे कुछ भजन भी गाए। बाबा के अनुसार ईश्वर एक ही है और सच्चे हृदय से कही हर पुकार को वो सुनता है । बाबा की दरगाह पर दूर दूर से लोग आते है ..बाबा की कृपा पाकर आने जीवन मे अलोकिक सुख समृद्धि और शान्ति पाते है । इसलिए भी यहाँ के बारे मे कहा जाता है कि यहाँ लोग रोते रोते आते है और हसते हसते जाते हैं .बाबा की दरगाह पर सच्चे दिल से मांगी हर मुराद पूरी होती है । बाबा की दरगाह पर जाती धर्म मजहब का कोई भेद नही है । तन्सरा के लोग अपनी खुशी के हर मौके मे यहाँ आशीर्वाद लेना नही भूलते ..शादी उत्सव के समय यहाँ के लोग दरगाह पर विशेष प्रार्थना आदि करते है है .कई लोग पाने बच्चों के झालर आदि भी यहाँ उतरवाते है । बाबा के मुरीद अपनी अर्जियाँ लिखकर बाबा की पवित्र दरगाह पर रखते है ..गौरतलब है बाबा के मुरीद किसी भी भाषा मे पाने दुःख दर्द यहाँ अर्जियों के रूप मे लिखते है । बाबा की कृपा से उनका निदान होता है ।
बाबा दीवाने शाह ने १९५८ मे तन्सरा मे परदा (समाधि) लिया उनके विषय मे ये भी बताया जाता है कि भारत मे सूफी संतों की परम्परा मे बाबा की एक अद्भुत बात ये है कि उन्होंने पूरे देश मे सात स्थानों मे अलग अलग नामों से परदा लिया । बाबा के तन्सरा मे परदा लेने के बाद उनके साले और दरगाह के मुख्य खादिम अहमद मामू ने बाबा के संदेश को जन जन तक पहुँचाया .अहमद मामू के दिवंगत हो जाने के बाद अब उनका पुरा परिवार बाबा की दरगाह पर सेवा करते है और बाबा के संदेश को जन जन तक पहुँच रहे हैं । बाबा की दरगाह के पास है ही अहमद मामू और अम्माजी (बाबा की पत्नी ) की मजार भी है । बाबा की दरगाह मे एक अद्वितीय शान्ति का एहसास होता है । इस साल बाबा की दरगाह को नया स्वरूप देने का काम भी जोरो से चल रहा है । साथ ही इस साल बाबा की दरगाह पे उर्स के पचास साल भी पूरे हो रहे है । बाबा की दरगाह पर मेरे शत शत नमन !!

2 टिप्‍पणियां:

Chhindwara chhavi ने कहा…

तन्सरा का उर्स ...

तन्सरामाल मे सूफी संत बाबा दीवाने शाह की दरगाह मे सालाना उर्स का आयोजन

अमिताभ भाई,
आप अपनी धरती की बातें बड़ी ही शिद्दत की साथ लिख रहे है ...

तन्सरा यानी हमारे गाँव के उर्स मेले को मैं कैसे भूल सकता हूँ ...

चादर ... कव्वाली और इत्र की मदहोश कर देने वाली खुशबू को मैंने बचपन से
महसूस किया है

शायद मेरे मुस्लिम प्रेम की जड़ें यहीं पर है...
अभी -अभी घर और गाँव से लौटा हूँ ...

जल्द ही कुछ लिखने की कोशिश करुगा ...

karmowala ने कहा…

अमिताभ जी आप के सार्थक प्रयाश की कड़ी का एक नया हिस्सा मुझे जो नज़र आया वो आपके विचारो मैं साम्प्रदायिक सदभाव की अनूठी मिसाल है आप अपनी धरती की बातें बड़ी ही शिद्दत की साथ लिख रहे है जो आपके जन्म भूमि के परती आपकी भावना प्रकट करता है अब देखते है की आपकी अगली रचना का क्या रंग होगा
मैं भी अपने मन की बात से इस टिप्पणी को विराम देना चाहुगा
जय जवान, जय किसान