शुक्रवार, 13 जून 2008

गब्बर की चाल /टूरिंग टाकीज़ (२)

शाम का वक़त शनिवार का दिन .....शनिवार के बाज़ार की भीड़ भाड़ से दूर शाम में हम दोस्त उमरा नदी चले जाते थे । पिछले गुरूवार शोले देखी थी .जिसका असर अब तक हमारे दिमाग पर था । गब्बर के रूप में अमज़द खान रात में डरावना सपना बनकर आता था .लेकिन दिन में जय और वीरू की तरह हम साहसी बनकर उसे खत्म करने की योजनाये गढ़ते रहते थे.नीलकंठ टाकीज़ में आज याराना लगी है .हम सभी दोस्तों का शाम को ये फ़िल्म देखने का प्रोग्राम था .फ़िल्म के पोस्टर पर गब्बर का चित्र असर कर रहा था .और हम सभी दोस्त इस फ़िल्म को लेकर अपनी- अपनी तरह से गुन्ताडे बुन रहे थे .एक फिल्मी कहावत है ..कि फ़िल्म का पोस्टर आधी फ़िल्म को बयां कर देता है (आजकल शायद ऐसा होता हो ,पर पहले ऐसा होता था ,हो सकता है ये पूरा सच हो )गब्बर यानि अमज़द खान का चित्र हमे भयंकर मारधाड़ वाली फ़िल्म का एहसास कर रहा था और हम सभी का कौतुहल उत्सुकता इस फ़िल्म को लेकर चरम पर थी ।
घर आकर हम सभी तैयार होकर पहुँच गए नीलकंठ टाकीज़ के टिकिट घर पर टिकट ली और सिनेमा की तीसरी लम्बी घंटी बजाने का इंतजार करने लगे । टूरिंग टाकीज़ में फ़िल्म शुरू होने से पहले तीन घंटिया बजाये जाती थी । तीसरी और आखरी घंटी शो शुरू से पहले बजती थी .गेट कीपर को टिकट देकर उससे आधी फटी टिकिट लेकर हम जम गए देखने याराना । फ़िल्म का कुछ हिस्सा बचपन का मज़ा आने लगा .बिसन कौन है ? हमे नही पता था .अमिताभ बच्चन कब आएगा .कब गब्बर की ढिशुम ढिशुम कब शुरू होगी दिमाग फ़िल्म से आगे चल रहा था .बिसन और किसन जुदा हो गए । बिसन शहर चला गया किसन हमारी तरह गाँव में रह गया । फ़िल्म आगे बढ़ी अमिताभ बच्चन गाते हुए रोटी बना रहे है .तभी फ़िल्म में गब्बर की एंट्री । सीन भी कुछ ऐसा विलेन आ गया ..पर इतनी जल्दी सोचा न था .कुछ देर बाद उनको गले मिलते देखा .लगा गब्बर की चाल है बिसन को मारकर नकली बिसन बनकर आ गया हो .फ़िल्म में हमारी रूचि बढ़ती ही जा रही थी .हम अपने अपने ढंग से गब्बर (बिसन) की चाल को समझने की कोशिश कर रहे थे ।
परदे पर चल रही फ़िल्म के अलावा एक फ़िल्म हमारे दिमाग में भी साथ साथ चल रही थी बिसन विलायती पतंग के बारे में किसन को बताता है । किसन उसे उड़ता देख घबरा जाता है । दिमाग मे चल रही फ़िल्म के मुताबिक लगता है अब शायद आसमान मे मारधाड़ हो .गब्बर की शायद ये भी चाल हो ? साथ ही आदमी को उडाने वाली पतंग हमारे रोमांच को दुगना कर रही थी .पहली बार इसे हम देख रहे थे ...बीच बीच में हम सबके बीच सवांद भी चल रहे है ..हो न हो ये पतंग बड़ी महंगी आती होगी ? काश हम ऐसी पतंग में उड़ पाते .मेरे मित्र सचिन ने कहा कल पतंग उडायेंगे । सभी ने हाँ कहा !!
इसी बीच ओ भोले गाना शुरू हो जाता है .सीटियों का शोर ....किसन शहर जाने के लिए तैयार .दिमाग में फिर वही बात हो न हो शहर ले जाकर गब्बर अपना असली रूप दिखाए ? हम ज़ोर ज़ोर से किसन को रोकने की कोशिश करते है ..किसनवा शहर मत जा ये तुझे मार देगा । इसकी गहरी चाल को समझ । बहरहाल , किसन शहर जा रहा है है.. हमारे मुताबिक गब्बर की चाल में फसने शहर जा रहा है । तभी चना ज़ोर गरम चना ज़ोर गरम आवाज़ का शोर बढ़ गया .हम चने को चबाते हुए फ़िल्म का आनंद लेने लगे ..साथ ही गब्बर की चाल को भी समझने के लिए चने का टॉनिक हमारे दिमाग के लिए बेहद ज़रूरी भी था !!.....(जारी है)

4 टिप्‍पणियां:

karmowala ने कहा…

ये आपकी कलम का जादू ही है की आपके लिखे हर शब्द का हम इंतिज़ार करते है और तुरंत उस पर जैसा भी हमे लगता है टिप्पणी जरूर करते है आपने अपने शायद बचपन को खूब मस्ती के साथ जिया होगा या इस तरह की अभीलाषा रही होगी लेकिन बचपन का सुन्दर चित्रण आपकी रचना को देख कर लगता है की आपको बच्चो के लिए कुछ संग्रह करना चाहिए

Udan Tashtari ने कहा…

पिछले हफ्ते ही टीवी पर याराना आ रही थी..कई सालों बाद फिर देखी..सही बह रही है आपकी लेखनी..जारी रहिये..अगलॊ कड़ी का इन्तजार है.

PD ने कहा…

हां जी.. मैंने पिछली कड़ी नहीं देखी थी.. अब देख ली.. :)
अगला भाग जल्दी लिखिये..

Amit K Sagar ने कहा…

हम सच में गब्बर की असल चाल जानने को उत्सुक हैं भाई...जल्दी से लिखना...आख़िर खेल खेला फ़िर से गब्बर ने...वो कौन सी नै चाल थी...जिसने आपको बिवश किया लिखने के लिए और मेरी उत्सुकता को बढ़ाने के लिए...चाल के इंतज़ार में;
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उल्टा तीर