मंगलवार, 15 जुलाई 2008

वी सी आर (दो)


जोगीराम तरक्की की सीढियां चढ़ते जा रहा था । इन दिनों वो
काफी खुश भी था । उसकी शादी लिए उसके पिता ने पास के ही गाँव की एक लड़की देख ली। जोगी ने पहली बार sविडियो से छुट्टी ली । उसे लड़की देखने गोहजर (पास का ही गाँव ) जाना था । जोगी अपने खास दोस्त प्रकाश के साथ दुल्हनिया के दीदार के लिए निकल पड़ा । वैसे प्रकाश को साथ ले जाने की एक अहम् वजह ये भी थी कि उसके पास फटफटी (मोटर साईकल ) थी । और इस रिश्ते में दोनों परिवारों के बीच वो मध्यस्थ की भूमिका में भी था । वो देखने में कैसी होगी ? जोगी का मन बार बार ख़ुद से यही सवाल कर रहा था । क्या वो फिल्मों की जानकर होगी ? गोहजर में कोई विडियो भी तो नही । क्या उसने कभी विडियो देखा भी ये नही ।
अगर नही भी देखा होगा तो क्या ? एक बार बस वो दुल्हन बनकर घर आ जाए .फ़िर उसको ढेर सारी फिल्में दिखा दूँगा । जोगी का ये भी मानना था विडियो में काम करने वाले उस जैसे आदमी के लिए ये ज़रूरी है कि उसकी बीवी कमसेकम फिल्मों की शौकीन तो हो । आख़िर जब देर रात वो कम से घर पर लौटे तो कम से कम उसकी बीवी ये तो पूछे ही कि आज कौनसी फ़िल्म लगी है । वो भले चार क्लास न पढ़ी हो लेकिन सिनेमा के मामले में वो अंगूठा छाप न हो । उसके भीतर सवालों का ज्वार भाटा रह रह के हिलोरे मार रहा था। कल रात ही उसने प्यार झुकता नही फ़िल्म देखी थी .फ़िल्म का मिथुन और पदमनी उसके जहन में चल रहे थे ।
मिथुन जैसे बाल रखना जोगी का अपना स्टाइल था । गाँव के लोग कभी कभी उसे प्यार से मिथुन भी कह देते थे । बहरहाल ,वो गोहजर आ गया । उसने अपनी होने वाली ससुराल में पैर रख ही दिए .होने वाले दामाद की खातिर दारी में पूरा घर लग गया । सखाराम जी जोगी के होने वाले ससुर है ।
जोगी के किस्सों से वे काफी अभिभूत थे । उसकी तरक्की का डंका उनके कानों में भी गूंजा था । यही वजह थी कि अपनी बड़ी बेटी गीताबाई के लिए उन्हें जोगी ही सबसे उपयुक्त लगा । चाय पानी की रस्म आदायगी के बाद । जोगी को गीता बाई के दीदार कराने की पहल प्रकाश ने ही की । प्रकाश का पहले से ही इस घर में आना जाना था .सो, चाय के कप पहुंचाने के बहाने वो रसोई में दाखिल हो गया । उसने घर की महिलाओं से कहा कि बाई को दिखा देते है ।
इधर जोगी का दिल धड़कने लगा था । वो बीच बीच में अपने भावी ससुर को अपने काम के बारे में भी बता रहा था .फिल्मों के बारे में हालाँकि उनकी रुचि कुछ कम थी । इसलिए वक्त की नजाकत के अनुरूप जोगी उनसे खेत खलियान और थोड़े फिल्मिस्तान की बात कर रहा था । उसे ये सब अच्छा नही लग रहा था । बार बार उसकी निगाहे घर के भीतर आ जा रही थी .वो गीता के बाहर आने का इंतजार जो कर रहा था (जारी )

6 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया बह रही है कहानी...अगली कड़ी का इन्तजार है.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

जोगी की तरह मेरा दिल भी जोर जोर से धड़क रहा है...ये जानने को की आगे क्या होगा? बहुत दिलचस्प अंदाज में आप ये कथा सुना रहे हैं...लेकिन जरा देर तक सुनाईये ना...ऐसे क्या पाठकों की धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं...
मैं आप के ब्लॉग पर देर से आने के कारण क्षमाप्रार्थी हूँ...
नीरज

PD ने कहा…

bahut khoob..
maine kal padh to liya tha magar comment likhne ki himmat nahi thi.. bahut thaka hua tha...
mera blog padhe, aapko pata chal jayega kyon thaka hua tha.. :)

Chhindwara chhavi ने कहा…

A.F,
samay naa mil paane ke chalte...
comment nahin kar paya...
aapki sabhee post lajavab hai.

RAMKRISHNA

http://chhindwara-chhavi.blogspot.com

karmowala ने कहा…

मिथुन दा कमाल का चरित्र इनके अनेक किरदारों को देख कर लगता है की वास्तव मे किरदार ही है ये कोई मुख्या हीरो नही आगे उनकी डांस कला कमाल करती है मुझे अपने बचपन की एक बात याद आती है की जब मैंने प्यार झुकता नही है देखी तो इसका गाना तुमसे मिलकर न जाने क्यों और भी कुछ याद आता है मुझे बहुत अच्छा लगता था एक बार वाही गाना चित्रहार कार्यक्रम मे आया तो मे भी जोर से गाने लगा मेरे पूरे परिवार के लोग मुझे देखने लगे और पिता जी ने कहा क्या हो गया तब मुझे समझ आया की मैंने एक दम गाना शुरू कर दिया था वाकई कुछ कलाकार और कुछ फ़िल्म सदा याद रहती है
बहुत ही अच्छा लगा अमिताभ जी

karmowala ने कहा…

मिथुन दा कमाल का चरित्र इनके अनेक किरदारों को देख कर लगता है की वास्तव मे किरदार ही है ये कोई मुख्या हीरो नही आगे उनकी डांस कला कमाल करती है मुझे अपने बचपन की एक बात याद आती है की जब मैंने प्यार झुकता नही है देखी तो इसका गाना तुमसे मिलकर न जाने क्यों और भी कुछ याद आता है मुझे बहुत अच्छा लगता था एक बार वाही गाना चित्रहार कार्यक्रम मे आया तो मे भी जोर से गाने लगा मेरे पूरे परिवार के लोग मुझे देखने लगे और पिता जी ने कहा क्या हो गया तब मुझे समझ आया की मैंने एक दम गाना शुरू कर दिया था वाकई कुछ कलाकार और कुछ फ़िल्म सदा याद रहती है
बहुत ही अच्छा लगा अमिताभ जी