बुधवार, 5 मार्च 2008

रेड्डी आंटी /उमरानाला की बात (११)

श्रीमती धन लक्ष्मी रेड्डी ....रेड्डी आंटी का यही नाम है। बाज़ार चौक उमरानाला मे काफी साल पहले उनका परिवार रहता था । सर्दियों मे बाज़ार चौक मे अमूमन हर रोज़ मेरी मम्मी समेत मोहल्ले की महिलाओं की बैठक दोपहर के वक़त उनके घर के बाहर हुआ करती थी .दोपहर के वक़त स्वेटर बुनते हुए उनके बीच काफी सारी बाते होती थी । उस समय मे काफी छोटा था ,स्कूल भी नही जाता था ...और मम्मी की पूँछ बनके मैं उनके साथ जाने अनजाने इन बैठकों का हिस्सा बन जाता था .रेड्डी आंटी का बेटा मेरा हमउम्र था ..नाम था चंदू । चंदू का असली नाम मुझे याद नही है .चंदू और मैं साथ मे खेला करते थे । रेड्डी आंटी के बारे मे बचपन मे मैंने बहुत सी बातें सुनी ....वो बताती थी की पहले उनका परिवार काफी गरीब था ...दीपावली के दिन उनका जनम हुआ था उस वक़त उनके पिता दीवाली की रात मे जुआ खेल रहे थे , उन्होंने उस रात जुए मे काफी धन जीता ...चूँकि आंटी का जनम दीपावली की रात हुआ इसलिए उनके पिता ने उनका नाम रखा धन लक्ष्मी । उनके नाम से उन्होंने जुए के पैसो से साडियों का कारोबार शुरू किया । उनका जनम पिता के लिए काफी शुभ रहा बकौल आंटी उनके पिता ने बाद मे ख़ुद की मिल भी शुरू की । रेड्डी आंटी हिन्दी अच्छी तरह बोल नही पाती थी । उनके घर मे ऐसी ढेर सारी चीजे थी जो मेरे आकर्षण का केन्द्र थी जैसे उनके घर का झूमर ,चंदू के खिलोने , टू इन वन टेप , सत्य साई बाबा के चित्र ,दीवार पर एक लड़की की पेंटिंग आदि । आंटी का परिवार सत्य साई बाबा का भक्त था उनके पास साई भजन के बहुत सारे टेप थे ..साथ ही तेलगु मे बाबा के प्रवचन भी । तेलगु नही जानने के बावजूद मे इन टेप को सुनना पसंद करता था , क्योंकि टू इन वन टेप मेरे लिए एक मज़ेदार चीज़ थी । महिलाओं की बातों मे कोई दखल न हो इसलिए आंटी चंदू और मुझे टेप चालू करके घर मे ही छोड़ देती थी। रेड्डी आंटी ने हमारे जायके मे साउथ की बहुत सी चीजे जैसे इडली ,डोसा ,साभंर ,रसम पायसम जोड़ी .इसलिए आज भी जब मैं इनको खाता हूँ तो रेड्डी आंटी याद आ जाती है । रेड्डी आंटी के हाथो मे जादू था उनके हाथ के बने डोसा मुझे बेहद प्रिय थे । रेड्डी आंटी को उमरानाला छोड बीस साल भी ज़्यादा हो गए । उनसे इस बीच कभी कोई बात नही हुई , जैसा कि वो कहती थी चंदू बड़ा होके डॉक्टर बनेगा .शायद चंदू डॉक्टर बन गया हो । रेड्डी आंटी ने बचपन मे मुझे एक बस का खिलौना दिया था ...वो बड़ी सुंदर सी बस थी .मेरा मन करता है उस बस मे बैठकर कभी रेड्डी आंटी से मिलके आऊं । चंदू अब शायद मुझे पहचानेगा भी नही ...लेकिन उससे भी मिलने कि इच्छा तो है !!

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