बुधवार, 23 अप्रैल 2008

मटिया /उमरानाला की बात (16)

गर्मियाँ शुरू हो चुकी हैं । दिल्ली मे रहते हुए उमरानाला की गर्मियाँ भी याद आती है. बचपन मे गर्मियों का मतलब होता था लम्बी छुट्टियाँ ....पढ़ाई लिखाई से मुक्ति बस खेल कूद मौज मस्ती । इसलिए भी गर्मियों का मौसम कभी गर्म नही लगा .....बल्कि उन दिनों ये मौसम नर्म दूब की तरह मन को प्रसन्न रखने वाला होता था । गर्मियों मे भरी दोपहर मे जाके पुलिया पे बैठना भी अच्छा लगता था ।करीब तीन चार बजे शाम को हम बैल बाज़ार क्रिकेट खेलने चले जाते थे । शाम के वक्त फिर घूमना फिरना .... बालहंस ,पराग ,चंदामामा , नंदन ,सुमन सौरभ चाचा चौधरी ,ताऊ जी राज कामिक्स आदि पत्र पत्रिकाएं पढ़ना दिनचर्या का हिस्सा होता था । खेत खालियानो की सैर आम की कच्ची कैरियाँ तोड़ना ... भी गर्मियों के आनंद को दुगना कर देता था ।
गर्मियों के दिनों मे अक्सर दिन के वक्त गर्म हवाओं के साथ धूल भी उड़ती है .....जिसे चक्रवात भी कहते है । हमारे गाँव मे धूल मिटटी के इस बवंडर को मटिया कहते हैं .बचपन मे मटीये को लेकर तरह तरह की कहानियाँ प्रचलित थी ..... ऐसा सुना था कि धूल का ये गुबार दरअसल भूत प्रेत होता है । इसको लेकर ऐसी मान्यता थी कि धूल का ये गुबार एक किस्म का जिन्न है ...धूल ऊँचे आसमान मे उड़ते हुए जिसके भी घर चले जाए ....समझो उसका सब कुछ साफ हो गया ...जिन्न घर के खाने पीने के सामान को चटकरने के लिए आता है । सामान धूल के साथ लेकर फ़िर अपने मालिक के घर ले जा लेता है । मटिया का घर मे आना शुभ नही माना जाता । अगर खेत मे कोई फसल काटने के बाद रखी है तो मटिया आना किसान कि चिंता को बढ़ा देता था । इस तरह कि कहानियो मे कडिया जुड़ती जाती थी । धूल मिटटी के गुबार को लोग अपनी अपनी नज़र से देखते थे । हमारे गाँव मे ऐसा मन जाता था कि दो खास घरों (उनका का जिक्र मे यंहा नही कर रहा हूँ ) है जहाँ पूरे गाँव मे घूमने फिरने के बाद मटिया चला जाता है । यानि जन मान्यता के हिसाब से मटीये का जिन्न उनके घर मे रहता है ।और लोगो के घर से सामान उडाकर उनका भंडार भरता है ।
मटीये की ये कहानियाँ मे बड़े चाव से सुनता था ....इन कहानियो मे एक्शन ड्रामा सबकुछ होता था । जिन्न को घर कैसे लाया जाता है .... कैसे उससे मन चाहा काम करवाया जाता है । गाँव के बुजुर्ग बताते थे की महादेव की यात्रा के दौरान मटिया ख़रीदा जाता है ... इसे एक गुड्डे जैसी प्रतिमा के रूप मे घर लाया जाता है । मटिया केवल अपने आका का हुक्म मनाता है ...... क्या हुक्म है मेरे आका की तर्ज़ पर । मटिया अपने आका के घर वालों को परेशान नही करता ..... उनके दुश्मनों को चुन चुन के सबक सिखाता है । साथ ही घर की सुरक्षा भी मटिया करता है । घर मे ज़रूरत का हर सामान आका के हुक्म पे लाकर देता है । हमारे पूरे गाँव मे ऐसा माना जाता था की दो खास घरों मे मटिया है ...... धूल का गुबार लोक मान्यताओं के मुताबिक ऊँचे आकाश मे उड़ने के बाद सीधे उनके घर मे चला जाता है । ऊँचे आकाश मे उड़ने के बाद मटिया जिस घर मे जाता था ...... उसकी चर्चा शुरू हो जाती थी .... आज ....सेठ के घर का मटिया आया था ।अगर इस बीच वाकई किसी का कोई नुकसान हो जाता था .... तो लोग इसे भी मटीये की ही करतूत मानते थे
मटीये के किस्से कहानिया आज भी मुझे अच्छे लगते हैं । कुछ सवाल आज भी मेरे मन मे उठते है कि मटिया उन दो घरो मे ही क्यों जाता था ? बहरहाल मटीये का आतंक कभी मेरे दिलो दिमाग पर नही रहा ....उमरानाला कि लाल मिटटी का ये गुबार मुझे बहुत अच्छा लगता था ..... क्योंकि इसी बहाने मेरे गाँव की मिटटी ऊँचे आकाश को तो चूमती है !!

5 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

अभिताभ भाई, यह मटिया पहले जमाने मे लोग इस से भुत प्रेत का नाम देते थे, हा यह भुत प्रेत तो नही ( कयो की इस तरह की कोई बस्तु होती ही नही )लेकिन बडे खतरनाक होते हे, जब यह पुरी गति से हो तो मकान भी साथ मे उडा कर ले जाते हे,ओर यह तब होता हे जब जमीन पार खुब गर्मी हो ओर आकाश पर ठण्ड हो या घणे बादल हो, जिस से आसमान मे ठण्ड हो जाती हे, ओर जिस के कारण हवा बहुत तेज घुमती हुई चलती हे ओर ऎसा लगता हे जेसे उपर को जा रही हो, अगर पास मे समुन्द्र या कोई बडा तलाब होगा तो वहा हवा ओर भी तेज होती हे, अमेरिका मे यह बहुत तबाही करती हे, पेड त्क उखड जाते हे, हमारे लोग सीधे साधे हे इस लिये हम भुत प्रेत समझते हे.

Chhindwara chhavi ने कहा…

अमिताभ भाई,

बधाई बहुत-बहुत ...
आप बहुत अच्छा काम कर रहे है ...

ताजा प्रयास मटिया की बात करें ...

मटिया मुझे भी सताता रहा है ...
मतलब मेरे जेहन में
उमड़ता रहा है ...

आपने जो देखा है ...
मैंने उसको भोगा भी हैं...

मेरे गाँव में एक आदमी का नाम ही मटिया था ...
आपने मटिया के बारे में लिख दिया ...
मगर
दिवाल के बारे में कुछ नहीं लिखा...

मटिया और दिवाल दोनों शब्द साथ -साथ चर्चा में रहते है ...

आशा है आप दिवाल से परदा....

रामकृष्ण डोंगरे
http://dongretrishna.blogspot.com

सुप्रिया ने कहा…

मटिया एक नया शब्द मालूम हुआ . एक नयी बात पता चली ....शुक्रिया

karmowala ने कहा…

बचपन मे गर्मियों और लम्बी छुट्टियाँ ....पढ़ाई लिखाई से मुक्ति बस खेल कूद मौज मस्ती । गर्मियों का मौसम कभी गर्म नही लगा .....बल्कि उन दिनों ये मौसम नर्म दूब की तरह मन को प्रसन्न रखने वाला होता था ये मनो वेग आज भी बच्चो के होते होगे तभी तो आज भी बच्चे गर्मियों की लम्बी छुट्टियाँ मैं कुछ न कुछ नया सीखते रहते है बस जो बचे नहीं रहे उन्हें ही गर्मी सताती होगी


शानदार प्रयाश

नीरज गोस्वामी ने कहा…

..... क्योंकि इसी बहाने मेरे गाँव की मिटटी ऊँचे आकाश को तो चूमती है !!
कितनी खूबसूरत बात कही है आप ने चित प्रसन्न हो गया.वाह. पूरा लेख ही शानदार है बधाई. मुझे पढने में वक्त लगा इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.
नीरज