बुधवार, 31 दिसंबर 2008

ऍफ़ एम् (भाग तीन)

" उमरा नदि का पुल "

एक
सौ दो दशमलव दो मेगा हर्ट्ज़ पर आकशवाणी का यह छिंदवाडा केन्द्र है .... हमारे आज के सांध्य कालीन प्रसारण में सुनिए कार्यक्रम युववाणी शाम पाँच बजे , छह बजे भक्ति संगीत का कार्यक्रम साढ़े छह बजे रोज़गार सूचना आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र से प्रादेशिक समाचार प्रसारित होंगे शाम सात बजे ..... सुगम संगीत रात आठ बजे ... और रात साढ़े आठ बजे चौपाल कार्यक्रम प्रसारित होगा ...... दोपहर की सभा यही समाप्त होती है ... अगली सभा में शाम पाँच बजे फ़िर मुलाक़ात होगी ... जय हिंद !!
तृष्णा ने जल्दी जल्दी खाना खत्म किया बुधवार चौथा पीयरेड हिन्दी का ...हिन्दी की कॉपी ...पहला गणित का गणित की कॉपी और भौतिकी के आज प्रेक्टिकल होंगे तृष्णा ने साइकल के करियर पर किताबे दबा ली और साइकल उठा कर स्कूल के लिए निकल पड़ा । रेलवे फाटक बिछुआ रोड पर तृष्णा का मकान तन्सरा में था , तन्सरा से करीब तीस चालीस स्टुडेंट दोपहर के स्कूल जाते थे .. लेकिन तृष्णा की क्लास बारहवी गणित विज्ञान संकाय में केवल उसके साथ गाँव की अंजुम खान ही थी । तृष्णा के कहने पर ही अंजुम ने दसवी के बाद गणित विज्ञान सब्जेक्ट लिया था । कक्षा छठवी से दोनों स्कूल साथ साथ जाते रहे । तृष्णा पहले अंजुम को अपनी साइकल में ही बैठा के ले जाता था । लेकिन दसवी से अंजुम भी अपनी लेडीज़ साइकल से स्कूल जाने लगी थी ।
अंजुम और तृष्णा के बीच में किताबो नोट्स का आदान प्रदान होता रहता था । और रास्ते में उमरा नदी के चढाव पर दोनों अपनी साइकल से उतर कर बतियाते जाते थे । उमरा नदि के पुल पर दोनों के बीच स्कूल की बातों के अलावा दुनिया जहान की बातों का आदान प्रदान होता था । स्कूल के मीठे खट्टे अनुभव भी सुनना सुनाना होता । अंजुम अपनी सहेलियों की तकरार भी तृष्णा को सुनाती थी । उमरा नदी का बहता जल और नदी का पुल उनकी बातें खामोशी से सुनता था ।
अंजुम को रेडियो ऍफ़ एम् सुनने का कोई खास शौक नही था लेकिन तृष्णा उसे अपनी बातों में रेडियो सुनाता था । अक्सर फरमाइशी गानों के प्रोग्राम में वो अपने अपने साथ साथ अंजुम का नाम भी पोस्ट कार्ड पर लिख कर भेजता था । कल की ही बात है अंजुम फिजिक्स के नोट्स लेने के लिए तृष्णा के घर आई थी । रेडियो पर फरमाइशी गानों के प्रोग्राम में उसने फ़िल्म दीवाना के गीत "तेरी उम्मीद... तेरा इंतजार करते है ..." दीवाना फ़िल्म के गाने के लिए तृष्णा के साथ साथ अपना नाम भी सुना था । सात सवाल कार्यक्रम के बारे में भी वो अंजुम को बताते रहता था ।
नदि का चढाव पूरा हो गया ...स्कूल में आजकल हिन्दी के पीयरेड बाद छब्बीस जनवरी के जलसे के लिए रिहर्सल शुरू हो जाती थी । बारहवी गणित विज्ञान और जीव विज्ञान के स्टूडेंट्स को इस दौरान प्रेक्टिकल कराये जा रहे थे । फिजिक्स के टीचर ने इस के लिए चार चार स्टूडेंट्स के दस ग्रुप बना दिए थे .. लाईट (प्रकाश) की गति का प्रयोग ...आजकल धूप भी खुल के नही निकल रही ...अंजुम और तृष्णा एक ही ग्रुप में थे ...(जारी है )

(आप सभी को नए वर्ष की शुभकामनायें )

3 टिप्‍पणियां:

सुप्रिया ने कहा…

amitabh ji ,
maza aa raha hai amitabh ji aapki is kahani me ek ke baad ek naye mod aur kirdar ab anjum bhi aa gayi . mujhe apni 12th class yad aa gayi . hum logo ko bhi group bana kar practical karvaye jate the . umra nadi ka pul ye bhag bhi zordar hai .sari kahani nazaro ke samne ghmoti hui lagti hai .

agli kadi me jane kya hoga.
saat sawal to nahi bas yahi ek sawal mere man me hai

happy new year !!

CHINMAY ने कहा…

badhiya hia. trishna ki kahani mazedar hai. par blog me maine ek cheez dekhi hai ki log kafi jaldi-jaldi likh dete hai arthat ras me pathak ke sarabor hone pahle hi ras ki nishpatti kar deta hai. ye nahi hona chahiye. cheezo ko jaldi khatma karne ki kya jaldi hai. ho sakta hai ki kafi jaldbazi me blog likhe jate ho isliye aisa ho raha ho khair. badhai. doosra bhag jyada achchha tha.

Suneel R. Karmele ने कहा…

अमि‍ताभ भाई,
पहली बार आपके ब्‍लॉग पर आया हूँ, काफी दि‍लचस्‍प है आपका लेखन। मैं भी छि‍न्‍दवाड़ा गोनी बि‍छुआ से हूँ। उमरानाला में जब भी बि‍छुआ से छि‍न्‍दवाड़ा की बस रूकती शाम को, तो बस स्‍टेंड पर वे मूंग के भजि‍ए और कढ़ी आज भी याद आ जाती है। युनुस भाई ।वि‍वि‍ध भारती। से आपके ब्‍लॉग के बारे में जानकारी मि‍ली थी, फि‍र और आता रहूँगा,,,,,, सुनील आर. करमेले,
suneelrkarmele.blogspot.com