शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

ऍफ़ एम् (समापन किस्त )

प्यार का पहला ख़त

तकरीबन रात आठ बजे तृष्णा तन्सरा बिछुआ रोड पर उतर गया । रात काफ़ी हो चुकी थी । वो तेज़ कदमों साथ घर की ओर बढ़ने लगा ...रास्ते में घरों के चूल्हे से रात का खाना बनने की लजीज खुशबू आ रही थी । चूल्हे का धुआ ..दिन भर पेट में चूहे कूदे ..तृष्णा घर आ गया । बड़ी देर कर दी ...हाथ मुहं धो के खाना खा ले । माँ ने कहा । तृष्णा ने अपने कमरे में रेडियो चालू कर दिया ...मक्के ज्वार की रोटी सेमी की सब्जी और प्याज़ की तीखी चटनी दिन भर की भूख को और भी बढ़ा रही थी । रेडियो पर फिल्मी गीतों का कार्यक्रम " एक फनकार " शुरू हो चुका था । तृष्णा ने भीतर से अपना कमरा बंद कर लिया । घर पर सभी लोग सो चुके थे । तृष्णा ने अपने बैग से दो दिल वाला ग्रीटिंग कार्ड निकला ..अंजुम को पहला ख़त लिख ...क्या लिखूं ? कुछ समझ नही आ रहा था ...गुलाबी स्याही वाला खुशबू वाला पेन तृष्णा कभी ...पेन को मुंह में दबाता कभी ...टेबल पर रख देता ...कमरे में टहलते हुए वो ग्रीटिंग कार्ड को देख रहा था ।
लैटर पेड के चिकना पन्ना उसमे बना दिल ....तृष्णा ने लिखना शुरू किया ...मेरी प्यारी ..कट कट ...पहला सफा उसने फाड़ दिया ...क्या लिखूं माय डीअर ...मेरी प्यारी मेरी प्यारी प्यारी ...तृष्णा पाँच छ सफे जाया कर चुका था । और फ़िर

मेरी प्यारी अंजुम ,
जन्म दिन की ढेरो शुभकामनाये !!
HAPPY BIRTH DAY TO YOU !!!
मैं नही जानता तुम इस ग्रीटिंग कार्ड और मेरी भावनाओ के बारे में क्या सोचती होलेकिन मेरे दिल ने कहा कि तुमसे अपने प्यार का इज़हार करूँ ।मेरे इस ख़त को पढ़कर तुम नाराज़ न होना ...तू मेरी ज़िन्दगी है .....................................................................................
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.........तृष्णा की रफ्तार बढती जा रही थी । जैसे दिल से कोई बात अपने आप निकल रही थी ....प्यार का पहला ख़त ..जिसकी शुरुआत उसे लगभग नामुमकिन लग रही थी ...वो लिखते लिखते .............
पूरे
दो पन्नो का ख़त लिख बैठा ।
अगर अच्छा लगे तो ख़त फाड़ देना
तुम्हारा
अपना
तृष्णा
तृष्णा ने ग्रीटिंग कार्ड पर टू डीअर अंजुम फ्रॉम तृष्णा लिखकर उसे अच्छी तरह चिपका दिया । रात के करीब बारह बज चुके थे । तृष्णा ने अपने पहले ख़त में कुछ रूमानी गाने भी लिखे । शायद वो उसके क्रिएटिव पोएटिक जीवन की पहली शुरुआत भी थी । ख़त में लिखी पहली कविता की कुछ लाईने उसने अपनी डायरी में भी लिख ली । रात भर तृष्णा करवट बदलता रहा । अंजुम ख़त के बारे में क्या सोचेगी । कहीं वो ख़त स्कूल में किसी टीचर को न दे दे ...या घर वालों को तृष्णा को अंजुम के अब्दुल चाचा से डर लगता था । अब्दुल चाचा टेक्सी चलाते थे ...और मोटर लाइन में होने के कारण कुछ फसादी किस्म के भी थे .अंजुम को भी उनसे डर लगता था ।
रेडियो पर भक्ति संगीत के साथ तृष्णा की सुबह हो गई । स्कूल जाते समय बड़ी हिम्मत कर तृष्णा ने अंजुम को ग्रीटिंग कार्ड और उसमे रखा ख़त दे दिया । इसे अकले में पढ़ लेना । अगर अच्छा न लगे तो फाड़ देना ।अचानक तृष्णा को क्या हुआ अंजुम सोच में पड़ गई .लेकिन उसने हलकी मुस्कराहट के साथ तृष्णा से बेझिझक ख़त ले लिया । तृष्णा तेज़ी के साथ स्कूल की तरफ बढ़ने लगा । उसने अंजुम को बताया आज शाम रेडियो पर मेरा इंटरव्यू आएगा ....
दोनों दिन भर कशमकश में स्कूल में रहे । तृष्णा बार बार उसे क्लास में देख रहा था उसने वो ख़त पढ़ा या नही ... उसका ध्यान उसकी फिजिक्स की मोटी किताब पर था जिसमे उसने ग्रीटिंग कार्ड रखा था ।शाम को तृष्णा अंजुम के साथ घर नही जाना चाहता था । लेकिन तृष्णा के स्कूल से निकलते ही वो उसके साथ तन्सरा के लिए निकल पड़ी ... तृष्णा ने पुछा कार्ड देखा क्या । रास्ते में अंजुम ने कार्ड खोल लिया ...वो चलते चलते तृष्णा के सामने उसका ख़त पढ़ती जा रही थी । अंजुम ने कहा कितने बजे तुम्हारा इंटरव्यू आएगा ...तृष्णा ने दबी आवाज़ में कहा ...छ बजे ठीक है में घर आई हूँ दोनों साथ में सुनेंगे ।
दोनों ने साथ में रेडियो पर इंटरव्यू सुना । अंजुम ने प्रेक्टिकल कापी के बीच में रख कर एक पर्ची दी ...उसने कहा इसे अकेले में पढ़ लेना ।
गाय को चारा पानी दे दे sssss...अंदर से आवाज़ आई तृष्णा प्रेक्टिकल कापी में रखी पर्ची को लेकर खेत की तरफ बढ़ने लगा । "I LOVE YOU ग्रीटिंग कार्ड अच्छा था तृष्णा की मुहब्बत की गाड़ी चल निकली .....

(पाँच साल बाद )

स्कूल में शुरू हुआ प्यार ...कॉलेज में आ गया । तृष्णा का रेडियो प्रेम और अंजुम प्रेम दोनों परवान पर रहे ... तृष्णा अंजुम कॉलेज में भी साथ में थे । फाइनल ईयर में तृष्णा को अंजुम ने एक ख़त दिया ..घर में उसकी शादी की बात चल रही है ....हमारे रास्ते अलग हैं .......नदी के दो किनारे कभी मिलते नही ..तृष्णा अंजुम के आखरी ख़त को नम आँखों से पढ़ रहा था । कुछ शब्द डी फोकस हो रहे थे । तुम हमेशा खुश रहना ...रेडियो पर तुमको सुनते रहूंगी ....अंजुम ने लिखा
एक
सौ दो दशमलव दो मेगा हर्ट्ज़ आकाशवाणी के छिदवाडा केन्द्र रेडियो पर गीत बज रहा था " ये प्यार था या कुछ और था तुझे पता मुझे पता " तृष्णा ने छिंदवाडा गुलाबरा में अपने कमरे में रेडियो की आवाज़ तेज़ कर दी , आज भी रेडियो पर जब भी ये नगमा बजता है तृष्णा भावुक हो जाता है ....और ऍफ़ एम् की आवाज़ ..ज़ाहिर है तेज़ हो जाती है । ये निगाहों का ही कसूर था तेरी खता मेरी ....
(कहानी अधूरी है )

5 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

vah aaj ke din par achhi kahani hai

सुप्रिया ने कहा…

bahut hi achchi kahani lagai . har dirshya aankho ke samne aa gaya . radio par gane bhi bhaut achche baje .trishna aur anjum ki prem kahani adhuri rh gayi is baat ka dukh zarur hua .lekin fir bhi pyar ka pehla khat ..umda tha .
aapki kahani me ek naye safar ka ehsas hua . shukriya .
aabahr

Amit K Sagar ने कहा…

ye song mujhe bhi bahut pasand hai .bhaiji kahani behtreen lagi .

PD ने कहा…

क्या बंधू.. आपके मेल का इंतजार करते हैं तो आप मेल नहीं करते हैं.. और जिनके मेल नहीं चाहिए होते हैं वे मेल कर कर के परेशान किये रहते है कि देखो मैंने नया पोस्ट लिखा है.. उसे जाकर पढो.. बहुत दिनों बाद यहाँ आया हूँ.. अब इसे गूगल रीडर में जोड़ ले रहा हूँ.. आगे से कोई पोस्ट नहीं छुटेगी.. :)

Akhil ने कहा…

ha to ji aapki kahani pad kar kafi achchha laga but ye kafi dardnak hai ......