बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

ऍफ़ एम् (भाग सात )

खिड़की वाली सीट

धरम टेकडी की पहाडी पर छिंदवाडा आकाशवाणी केन्द्र में दोपहर बाद तृष्णा पहुँच ही गया । आकाशवाणी के गेट को वो बड़ी उत्सुकता से कुछ देर ठहरकर देखता रहा । उसका सपना सच हो रहा था ... आकाशवाणी केन्द्र के इर्द गिर्द वो पहले चक्कर काटकर चला जाता था । बाहर से हर कोने से इसे उसने देखा था । वो सात सवाल कार्यक्रम के विजेता के रूप में ही इसके अंदर जाना चाहता था । आज उसे ये एंट्री मिलने जा रही थी । कविता जी से भी मुलाक़ात होगी ,जिनकी भी तक उसने सिर्फ़ आवाज़ ही सुनी थी । रेडियो पर प्रोग्राम देने वाले सुनील कदोला जी भी मिलेंगे । जिनकी चौपाल घर पर उसके पिताजी बड़े चाव से सुनते हैं । और कौन कौन मिलेगा ....? वो सोचने लगा ।
आकाशवाणी के फ्रंट ऑफिस में वो दाखिल हो गया । एक मधुर सी आवाज़ ...जी किस्से काम है ? तृष्णा ने सात सवाल कार्यक्रम ज़िक्र किया । रजिस्टर में उसका नाम लिख लिया गया । उसे कुछ देर इंतज़ार करने के लिया कहा गया । तृष्णा आकशवाणी के स्वागत कक्ष में बैठ गया । वो इधर उधर उत्सुकता से निगाहे दौड़ा रहा था । तभी एक आदमी तेज़ी से चिल्लता हुआ आगे आगे जा रहा था ...उसके पीछे एक महिला अपना पसीना पोंछते हुए कुछ परेशान सी उसके पीछे पीछे जा रही थी । ये सब क्या गड़बड़ करते हो मैं तुम्हारी नौकरी खा लूँगा । तीन दिन बाद छब्बीस जनवरी के कार्यक्रम प्रसारित होंगे अभी तक कुछ भी तैयार नही हैं । लोक गीत की रिकॉर्डिंग भी क्या मैं ही करवाऊंगाssss वो डांटता हुआ एक कमरे में घुसा । तृष्णा ने उस कमरे के बहार लगी तख्ती को गौर से पढ़ा "एम् के डांगे स्टेशन डारेक्टर " तख्ती को पढ़कर और डांगे की सख्ती को देखकर तृष्णा को आकाशवाणी के केन्द्र में उसके कद और पद का अंदाजा हो गया ।
डांगे जिस महिला को डांट रहा था ...वो स्वागत कक्ष में किसी डिसूजा को पूछ रही थी । ये डिसूजा भी हर दिन लेट आता है । और काम के वक्त ही भाग जाता है । कविता जी सात सवाल के लिए एक लड़का आया है । तृष्णा अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया । तो ये है कविता शर्मा उसे बड़ी हैरत हुई । कविता ने उसे कुछ देर और बैठने के लिए कहा । रिकॉर्डिंग करने वाला डिसूजा अभी तक नही आया है । हमेशा लेट होता है साला ... कविता जी के मुंह से गाली सुनकर उसे हैरत हुई ।
मोहित को बताऊंगा कितनी भद्दी दिखती है । मुझे तो लगता था आसमान की कोई परी होगी पर ये ???? बैठे बैठे तृष्णा वहां की हर हलचल को बड़े गौर से देख रहा था । शीशे वाला कमरा ..वो रिकॉर्डिंग स्टूडियो था । काफी देर हो रही थी शाम होने वाली थी । तृष्णा को वहां बैठे बैठे तीन घंटे से भी ज़्यादा हो गए थे । किसी ने चाय के लिए भी नही पूछा । दो तीन दफे तृष्णा बगीचे में टहलकर अपना टाइम पास करता रहा । वहां बगीचे में उसने कविता को सिगरेट के कश मारते हुए देखा । कितनी अच्छी छबी बनाई थी मैंने कविताजी की पर यहाँ तो सब उल्टा ही है । एक नौजवान से उससे बड़े प्यार से बात की ...कैसे आए हो भइया !! उसके ऐसा बोलते ही उसने उसकी आवाज़ पहचान ली दरअसल ये नौजवान कोई और नही चौपाल वाले सुनील कन्दोला जी ही थे । सुनील ने उससे काफी देर बात की ...बातों बातों में उसने आकाशवाणी के गर्म मिजाज़ स्टेशन डारेक्टर के बारे में भी काफी कुछ कहा । त्रिशन ने पूछा ये डिसूजा कौन है ? हमारे यहाँ रिकॉर्डिंग में है ....साला एक नम्बर का काम चोर है । उसकी वजह से ही हम उदघोषको को गाली खानी पड़ती है । क्यों तुम्हरी रिकॉर्डिंग अभी तक नही हुई क्या । मैं कविता को बोलता हूँ । वैसे तुम कहाँ से आए हो ...तृष्णा ने कहा उमरानाला तन्सरा से ... मेरा अभी प्रोग्राम है । तुम भी अपनी रिकॉर्डिंग करवा लो मैं तुम्हे एल सी स्टैंड पर छोड़ दूंगा । तृष्णा को सुनील से मिलकर बहुत मज़ा आया । सुनील कन्दोला आकाशवाणी में पार्ट टाइम काम करते थे । इसके अलावा वो पी गी कालेज में हिन्दी साहित्य भी पढाते थे।

भीतर से तृष्णा के लिए कविता का बुलावा आ गया । तृष्णा का इंटरव्यू रिकॉर्ड हो चुका था । कविता जी को धन्यवाद कहने के बाद वो सुनील के साथ बस ई एल सी पर आ गया । मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम की पुष्पक बस में खिड़की वाली पिछली सीट पर बैठे बैठे वो गुप्ता की दुकान से ख़रीदे हुए ग्रीटिंग कार्ड को निहारने लगा । कल अंजुम को कार्ड देना है । घर जाते ही ख़त भी लिखना है ...कमबख्त आकशवाणी में डिसूजा की वजह से इतनी देर हो गई । ठंडी हवा के झोंके के साथ खिड़की वाली सीट पर उसे हलकी हलकी झपकी आने लगी ...अंजुम को आज प्यार का पहला ख़त लिखना है ... खिड़की से ताजी हवा के झोंके के साथ ...
अंजुम के ख्यालों में तृष्णा खोने लगा ....

3 टिप्‍पणियां:

Chhindwara chhavi ने कहा…

अमिताभ भाई ,

कहानी तृष्णा की ... तिलिस्म सात सवाल का ... ऍफ़ एम् की कहानी की
सातवीं किस्त के लिए आपको बधाई .

धरम टेकडी की पहाडी पर बना छिंदवाडा आकाशवाणी केन्द्र मेरे लिए एक समय
बड़ा लक्ष्य हुआ करता था . कॉलेज के पहले साल में मैंने इसके आसपास कई चक्कर काटे .

तीन -चार साल की मेहनत के बाद मैं पहली बार साल सवाल का विजेता बना फ़िर
तो ... सिलसिला ही चल पड़ा . दूसरी - तीसरी - चौथी बार .
विजेता की बिगुल धुन मुझे झकझोर देती थी .

रेडियो स्टेशन के अन्दर को जो सीन आपने दिखाया है वह कुछ कुछ वैसा है ...
जैसा मैंने देखा था . मगर सब कुछ नहीं . '' तीन दिन बाद छब्बीस
जनवरी के कार्यक्रम प्रसारित होंगे अभी तक कुछ भी तैयार नही हैं ।'' जैसे
संवाद तो ठीक है ... मगर वहां मैंने किसी भी ... महिला को सिगरेट के कश
लेते हुए नहीं देखा . कविता दीदी के बारे में मैं भी .

हाँ इतना जरूर है की आकाशवाणी परिसर में मेल कर्मचारी खूब नशा करते थे
... जिसको लेकर कई बार हंगामा हुआ था . यह उस समय की बात है जब में पीजी
कॉलेज में एम्ए कर रहा था . साथ ही लोकमत अखबार के लिए रिपोर्टिग भी .
पेपर में इसकी ख़बर भी छपी थी .

एक बार फ़िर बधाई .
तुम्हारा ... तृष्णा

Amit K Sagar ने कहा…

भाई जी अब कहानी में और मज़ा आ रहा है . तृष्णा अंजुम का प्यार क्या गुल खिलायेगा मुझे इतजार रहेगा .

सुप्रिया ने कहा…

ye kahani bhi badhiya ban rahi hai. main bhi bus me safar karte hyue khidki wali sat par baithna pasand karti hun . khidki wali seat mujhe apani hi koi aadat lagi. kahani me anjum ki bhumika aur badi honi chaiye mera sujhav hai . uske bare men kuch aur bhi pahlu pata chale isi asha ke sath

aabhar