अच्छा जोगी ने हल्की मुस्कान और सीने में सुकून के भावों के साथ अपनी खुशी ज़ाहिर की । इस रिश्ते ने उसके दिल और दिमाग दोनों में ही आकर ले लिया था । उधर गीता को भी जोगीराम भा गया । उसकी मिथुन जैसी लम्बी जुल्फों ने उस पर जादू कर दिया । इसी बीच ,गीता की माँ ने गीता और उसकी भाभी को खाना लगाने के लिए कहा । जोगी की ओर से रिश्ता पक्का होता देख ,प्रकाश ने गीता के पिता को कहा कि कपडे मिठाई और पैसे दामाद जी के हाथ में रख कर बात को पक्का कर देते है । गीता के पिता ने कहा ठीक है । जोगी के माथे पर तिलक लगा कर इस रस्म को पूरा किया। जोगी गीता का हो गया .गीता जोगी की हो गई .सखाराम जी (जोगी के ससुर ) ने कहा कल तुम्हारे घर आकर पंडित से शादी की तारीख निकलवा लेंगे .हो सके तो तुम भी कल की छुट्टी और ले लेना .जोगी ने ठीक है कहा । जोगी की विदाई शानदार ढंग से हुयी । भाभी ने गीता की एक फोटो उसे सबकी नज़रों से बचाके दे दी ..और कहा कि तुम भी अपनी फोटो प्रकाश के हाथों भिजवा देना ।
विदाई के वक्त एक झलक जोगी ने फिर गीता का दीदार किया । वो इस मंज़र को आंखों में हमेशा के लिए क़ैद कर लेना चाहता था । उसे महसूस हुआ गीता से उसे प्यार हो गया है । आज का दिन उसके लिए बहुत बड़ा था .प्यार झुकता नही फ़िल्म का गाना "तुमसे मिलकर न जाने क्यों और भी कुछ याद आता है ...." वो पूरे रास्ते गुनगुनाता रहा । विडियो के बजाय उसने प्रकाश से कहा कि उसे उमरा नदी के पुल पर ले चले । उमरा नदी के पास कैलाश के ढाबे पर बैठकर चाय और आमलेट के साथ जोगी सुनहरे कल के सपने बुनने लगा .शाम का वक्त बीतने लगा। माहौल में अँधेरा बढ़ने लगा । प्रकाश ने कहा रात का खाना ढाबे पर ही खाकर घर जायेंगे ।(जारी )
3 टिप्पणियां:
मस्त भाई मस्त.. दिल थाम कर आपकी कहानी सुन रहें हैं..
बस एक बात बता दिजिये, क्या ये सच्ची कहानी है?? :)
बेहतरीन....सुनाते रहिये.बहुत आभार.
बहुत दिलचस्प कहानी बनती जा रही है...पढ़ तो मैंने पहले ही ली थी लेकिन कमेन्ट जरा देर से कर रहा हूँ...क्षमा करें...इस पर एक बहुत बढ़िया फ़िल्म बन सकती है...समझ में नहीं आता की क्यूँ हमारे निर्माता निर्देशक बेकार की कहानियो पर फिल्में बना कर पैसा बरबाद करते हैं अगर ऐसी सीधी सरल कहानी पर फ़िल्म बने तो उसकी धूम धाम से चलने की गारंटी अपनी है....
नीरज
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