
रामदीन ने बांस और टाट के बोरे से अपनी दुकान को बनाया। इसमें देवी देवताओं के चित्रों की भरमार थी । यूँ तो रामदीन की उम्र पचास से भी ज्यादा हो चुकी थे .उसकी दो बेटियों की शादी यवतमाल में हो चुकी थी । रामदीन के पास जिम्मेदारी के नाम पर उसकी पत्नी सुशीला और वो ख़ुद था .सरकारी नौकरी रामदीन को रास नही आई इसलिए उसने सरकारी नौकरी को छोड़कर चाय की इस छोटी सी (उसके और गाँव के लोगो के लिहाज़ से बड़ी )दूकान का धंधा पिछले बीस सालों में जमाया । इस दुकान में दोनों पति पत्नी दिन भर व्यस्त रहते .रामदीन और सुशीला के दिन बड़े आराम से कट रहे थे । इस छोटे से धंधे की बदौलत उसने गाँव में अपना घर ज़मीन सब कुछ बना लिया था । गाँव में एक तरह से रामदीन की गिनती धनी -मानी लोगो में भी होती थी .प्यार और आदर से गाँव के लोग उसे आजा (यानि दादा) और सुशीला को आजी (यानि दादी )कहते थे ।
उसकी इस दुकान में रोज़ मर्रा का सामान जैसे साबुन सोडा चीनी आदि भी मिल जाता था । रामदीन अपना व्यापार बढ़ाना चाहता था .लेकिन आजी उसे मन कर देती थी .आजी उससे कहती थी कि हम लोगो के पास जो कुछ भी है वो हम दोनों के लिए बहुत है । पिछले कुछ दिनों से रामधीन खोया खोया रहने लगा था । कारण था आसमान से आ रही आफत ...स्काई लैब .उसकी दुकान पर बैठने वाले लोग इस आफत के बारे में रोज़ चर्चा करते थे । रामधीन भी गाँव में आने वाले अखबार और अपने रेडियो पर इस आफत के किस्से पढ़ और सुन रहा था । रामधीन को अन्दर अन्दर ही ये चिंता सताने लगी कि बस कुछ दिनों की बात है..आसमान से साक्षात् प्रलय आ रहा है । सारी दुनिया पल में खत्म हो जायेगी । अखबार में बड़े बड़े गहरे और काले रंगों में छपे शब्द "दुनिया खत्म होने वाली है ?" उसकी चिंता को बढ़ाने लगे थे । अखबार की गाड़ी सवेरे सवेरे रामदीन की दुकान पर ही अख़बार के बण्डल डालती थी.
ऊपर से रोज़ रोज़ बिल्ली का रास्ता काट देना रात भर उसका रोते रहना रामधीन को ये सब प्रलय काल का अपसगुन लग रहे थे। कितनी देर और लगेगी आजा चाय खौल गई क्या ..रामधीन की तंद्रा टूटी (जारी है )
1 टिप्पणी:
आगे क्या ?
एक टिप्पणी भेजें