हर साल हमारे स्कूल मे छब्बीस जनवरी के जलसे का आयोजन होता है . इस जलसे मे कक्षा दो मे मैंने और मेरे मित्र आलोक ने एक नाटक का मंचन किया था . नाटक का नाम था " वोट बटोरी लाल " . वोट बटोरिलाल जी का किरदार मैंने प्ले किया था , और आलोक बना था "भीड़ जुगाड़ी लाल" . नाटक कुछ इस तरह था कि माननीय वोट बटोरीलाल जी प्रदेश के शिक्षा मंत्री है , एक स्कूल के उदघाटन के सिलसिले मे वो गाँव मे आते है . शिक्षा मंत्री होने के बावजूद वो अंगूठा छाप है . जनता के बीच उनको भाषण देना है . लेकिन जब उनकी नज़र भीड़ पर जाती है , तो वो ये देख कर हैरान हो जाते है कि उनके आगे केवल बच्चे ही बैठे है . बच्चो को वो एक लंबी स्पीच देते है , जिसमे वो शिक्षा पद्धति को सुधारने की बात करते है .बच्चो को वो भविष्य का वोटर कहते है , और बच्चो से अपील करते है कि बडे होने पर वो उनको ही वोट दे अपना सपोर्ट दे . बच्चो को खुश करने के लिए वो उनको परीक्षा से मुक्त कर देते है .साथ ही मंच पर ही घोषणा करते है कि ' आज के बाद पूरे प्रदेश मे कोई परीक्षा नही होगी , बच्चे बिना पढे ही पास हो जायेंगे . बच्चे ताली बजाते है , वोट बटोरीलाल की जयकार होती है . नाटक खत्म हो जाता है . उस साल वाकई ऐसा हुआ कि पांचवी तक के बच्चो को जनरल प्रमोशन मिल गया . हम बिना पढे ही पास हो गए . मुझे लगता है कि मंच पर की हुई बात का ही ये असर था . आज भी लगता है कि बच्चो को परीक्षा का भूत ही सबसे ज्यादा परेशान करता है . यदि संसद मे कोई बच्चा पहुंच जाये तो वो यकीनन सब बच्चो को बगैर परीक्षा के ही पास करवा देगा . बहरहाल उस साल मैंने अपना पहला वोट भी डाला , हुआ यूं कि एक बुजुर्ग को वोट डालने के लिए मैं लेकर मतदान केन्द्र तक गया था . वोट बटोरीलाल जी की चर्चा इसलिए भी ज़रूरी थी .
2 टिप्पणियां:
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
badhiya raha yah bhi.. :)
divali ki der se hi sahi magar badhayi..
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