मेरे गाँव की लाल मिटटी मुझे आज भी याद आती है । ऐसा होना स्वभाविक सा है क्योंकि इस गाँव में मेरा बचपन बीता है । ज़िन्दगी के सुनहरे पल भी , दिल्ली में रहते हुए एक अरसा हो गया है , लेकिन उमरानाला की बात कुछ और ही है . मेरे बड़े पापा अक्सर कहा करते थे की हमारा उमरानाला आर .के . नारायण के " मालगुडी" जैसा है. मैंने दिल्ली में रहते हुए अपने गाँव की उन समानताओं को खोजने की कोशिश की जो मालगुडी जैसी है . हमारे गाँव नेरो गेज रेलवे ट्रेक है , छोटी सी ट्रेन और इसमें सवार होकर आसपास की सैर , दिल्ली मेट्रो में भी वो मज़ा नही जो इस छोटी सी ट्रेन में है , हालांकि अब ज़ल्द ही यहाँ पर बड़ा ट्रेक और बड़ी ट्रेन आने वाली है . मुझे आसपास के इलाको के सफर अब भी याद हैं , जो मैंने इस ट्रेन में सवार हो कर किये .शनिवार के दिन लगाने वाले साप्ताहिक बाज़ार की बात भी निराली है , हर हफ्ते एक बार पूरा माहौल मेले जैसा ..... शनिवार के बाज़ार में सब्जी भाजी से लेकर तमाम तरह के सामान . वाह ! क्या बात है इस बाज़ार की , ग्रामीण संस्कृति की उम्दा तस्वीर !!
हमारे गाँव से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर तन्सरा गाँव में सूफी संत बाबा दीवानेशाह की पवित्र दरगाह हैजहाँ देश विदेश से लोग जियारत के लिए आते है . मेरे पूरे परिवार की इस पवित्र स्थल के प्रति गहरी आस्था है . गाँव में एक नदी भी है ... जिला मुख्यालय यानी छिन्दवाडा से उमरानाला २२ किमी. दूर है . गाँव के दक्षिण छोर पर नदी के पास शिवजी का मंदिर और उत्तर दिशा में हनुमान जी का मंदिर है . इसके चारो और हिवारा वासुदेव , तन्सरा , इकल बिहरी , जाम मोहखेड़ और आंजनी गाँव हैं ।
उमरानाला की लालमाटी कभी कभी मुझे मंगल ग्रह की तरह लगती हैं ।बचपन में अक्सर ये लाल माटी और इसके लाल हरे कंकड़ पत्थर मेरी वैज्ञानिक कल्पना के आधार बने मुझे लगता था कि इस गाँव का संबंध हो न हो मंगल ग्रह से रहा होगा . मैंने कई बार ये प्रयास रात में आसमान की ओर निहार कर किया ताकि किसी न किसी तरह अपने गाँव और मंगल ग्रह के बीच पुराने संबंधो की कोई कड़ी जोड़ लूं ताकि मेरे गाँव को विश्व मंच पर एक अलग स्थान मिल जाय . दिन में कई बार मैंने नदी के पत्थर जमा किये , मेरी इन कोशिशो में ऐसे पत्थर जमा करने का लक्ष्य होता था कि उमरानाला में मंगल वासियों के आने के सबूत मैं जुटा संकू . बहरहाल मंगल और मेरे गाँव के बीच कोई गहरा ताल्लुक हैं ,दोस्तों के बीच अक्सर ये चर्चा होती थी .क्योंकि यंहा की लाल माटी में एक अजीब से कशिश रही है . जो धरती की हर तरह की मिटटी से जुदा नज़र आती हैं . कभी यूँ भी लगता था कि मैं यू .ऍफ़ .ओ . के अनसुलझे रहस्य को सुलझाकर इस संबंध को मान्यता दिलवा दूं ।
इस गाँव के नामकरण की भी बड़ी दिलचस्प कहानी है , हुआ यूँ की जब इस गाँव में अंग्रेज रेलवे ट्रेक का काम करवा रहे थे , तब गाँव की उमरा नदी पर पुल बनवाते समय एक अंग्रेज रेलवे अधिकारी गाँव के लोगो से पूछा तुम्हारे गाँव में जब रेल आएगी तो गाँव के स्टेशन का नाम क्या होगा ... गाँव वालो ने कहा बाबू हम सभी तो इकल बिहरी गाँव के रहने वाले हैं . इस गाँव का तो कोई नाम भी नहीं हैं . अंग्रेज अधिकारी की नज़र अचानक एक पेड़ पर पड़ी उन्होने कहा ये किस चीज का पेड हैं . गाँव वालो ने बताया की साहब ये उमर का पेड़ हैं . उमर के पेड़ के नीचे नाला . उस अग्रेज अधिकारी ने अपनी रचनात्मकता का उपयोग कर उमर के पेड़ और नाले को मिलाजुलाकर हमारे गाँव को नाम दिया "उमरानाला ". किसी समय हमारे गाँव में उमर के पेड़ बड़ी तादात में थे । लेकिन मज़े की बात आज उमरानाला में उमर का एक भी पेड़ नही । ये मेरा और मेरे दोस्तो दोस्तों का सौभाग्य है की हमें उमर के पेड़ न केवल देखने को मिले बल्कि हमने उमर के फलो को भी चखा !! उमर के पेड़ के नीचे खेल खेले उसकी छाँव को महसूस किया . ये वाकई अदभुत था . उमर का पेड़ आज भी मेरे सपने में आता है . क़रीब चार साल पहले मैंने आसपास के क्षेत्रोमें उमर को ढूँढने की बहुत कोशिश की , लेकिन ये कोशिश बेकार ही रही . गाँव में आज उमर का एक भी पेड़ नही हैं ।
मुझे अफ़सोस है गाँव में आज उमर नहीं हैं . उमर का दरख्त अब नही लेकिन उसकी हवाओ का असर आज भी यंहा की फिजाओं में खुशबू बिखेरता हैं. मैं लिखते हुए उसकी खुशबू को महसूस कर सकता हूँ . लाल मिटटी में आज भी मन करता है कि मैं लोट जाऊँ .उमरानाला की इस माटी के बहुत एहसान हैं . इसका ऋण किसी भी तरह नहीं चुकाया जा सकता . उमरानाला पोस्ट यादों के गलियारों में जाने का एक सबब यह भी हैं. शायद खुद से मुखातिब होने की कोशिश हैं . आखिर कौन हैं जो अपनी जड़ो से प्यार नही करता ?
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2 टिप्पणियां:
भाई जान
सप्रथम
जन्म-दिवस की
बहुत-बहुत शुभकामनायें
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""उमरानाला की बात " (०१)"
को पढा-
सचमुच इसे पढ़ना जहाँ बहुत ही रुचिकर रहा-
वहीं मैंने महसूस किया
दिल्ली शहर से आज
बिना काम-और बिना दाम-
बिना सवारी अपने गाँव
घूमने का ये तोहफा रूपी मौका मिला है...
शुक्रिया भाई जान! शुक्रिया-shukriya
"अल्फाजों कि माला में जो अहसास तुमने भर दर दिए
कसम से बहुत दूर थे-मगर अपने गौण जा हर किसी से मिल लिए"
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मैंने इसे पढ़ने हुए इक़ दिली आनंद महसूस किया-वहीं मुझे अपना गाँव बहुत याद आया-अगर इक़ बारगी को आँखें नाम हुईं-तो ये कहूँगा-ये वर्षा की तरह वर्षं क्यों नहीं! अरे! इनमें वो सुकून था-वो चैन था-मत पूछो---जो भी बिछड़ा मुझसे गाँव से शहर tak -मेरे साथ वो हर मजमून था-कभी लिखा दोस्तों को-कभी लिखा था महबूब को-कभी बेठा था किसी दरख्त की छुन में-कभी घूमता रहता था गाऊं में---वाह! क्या याद दिलाई---हर इक़ गाँव के नामकरण की एसी ही होती है दास्ताँ! लोग बदल जाते हैं-खुद भी-चीजों को भी-मगर फिर भी-गाँव ताकता रहता है-खुद में समेटे रहता है-अहले अन्जुमने दास्ता!
-*---आशा है-ऐसी तरह और भी बहुत कुछ पढ़ते रहने को मिलेगा...इसी आशा के साथ...आपका "अमित के. सागर"
faujdaar bhai!
dil,dard,dushmani, or daryadilli koi aap se sikhe bhawna khai na kahi kisi kone mein ghar kar baithe rahti hai or sancharit hone ke liye bilbilaati hai whai shabd bankar jo bog par nikal pade hai asshaa karta hoon ki samay samay par parichit karwaate rahoge ....
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