बचपन मे हमारी बालभारती कि किताब मे एक कविता थी " चल रे मटके " .दरअसल ये कविता एक ऐसी बुढ़िया के बारे मे थी जो कि बहुत सारा धन लेकर रास्ते मे चोरों और जानवरों को चकमा देकर अपनी ससुराल तक सुरक्षित जाती है . क्लास मे ये कविता हम ज़ोर ज़ोर से लय मे गाते थे । कविता कुछ इस तरह है :
हुए बहुत दिन बुढ़िया एक
चलती थी लाठी को टेक
उसके पास बहुत था माल
जाना था उसको ससुराल
मगर राह मे चीते शेर
लेते थे राही को घेर ।
ऐसी मुश्किल मे ये बुढ़िया अपने दिमाग का इस्तेमाल कर एक उपाय करती है . वो बाज़ार से एक बड़ा सा मटका लेकर उसके अन्दर बैठकर" चल रे मटके ट म्म्क टू ....." गाते हुए अपनी ससुराल तक जाती है . " चल रे मटके ट म्म्क टू ....." किताब मे बुढ़िया का एक सुन्दर सा चित्र था ,उसका मटका भी बड़ा सुन्दर था . बीच मे चोर और चीते शेर के भी चित्र थे . मैंने गाँव कि बुजुर्ग महिलाओ मे इस बुढ़िया को ढूंढने कि कोशिश की . बाज़ार मे मटके देखे कई देर तक मे मटकों को गौर से देखता .कुम्हार से पूछता क्या तुम्हारी दुकान से कोई बुढ़िया मटका लेकर अपनी ससुराल जाती है . वो बस हँसकर अपने काम पर लग जाता .मैंने उतना विशालकाय मटका अभी तक नही देखा ,उसका चित्र आज भी मेरी नज़रों के सामने है . सम्प्रति , मध्य प्रदेश मे प्राथमिक शिक्षा का कोर्स बदल गया है . बुढ़िया कि कविता कई सालो से अब इसमे नही है . बालभारती की वो किताब भी नही है . बुढ़िया के साहस की कहानी नही है . ये कविता अब तक मुझे याद है यही इसका जादू है . ढेर सारे गहने पहने वो बुढ़िया शायद अब अपनी ससुराल मे रहती हो ?
चलती थी लाठी को टेक
उसके पास बहुत था माल
जाना था उसको ससुराल
मगर राह मे चीते शेर
लेते थे राही को घेर ।
ऐसी मुश्किल मे ये बुढ़िया अपने दिमाग का इस्तेमाल कर एक उपाय करती है . वो बाज़ार से एक बड़ा सा मटका लेकर उसके अन्दर बैठकर" चल रे मटके ट म्म्क टू ....." गाते हुए अपनी ससुराल तक जाती है . " चल रे मटके ट म्म्क टू ....." किताब मे बुढ़िया का एक सुन्दर सा चित्र था ,उसका मटका भी बड़ा सुन्दर था . बीच मे चोर और चीते शेर के भी चित्र थे . मैंने गाँव कि बुजुर्ग महिलाओ मे इस बुढ़िया को ढूंढने कि कोशिश की . बाज़ार मे मटके देखे कई देर तक मे मटकों को गौर से देखता .कुम्हार से पूछता क्या तुम्हारी दुकान से कोई बुढ़िया मटका लेकर अपनी ससुराल जाती है . वो बस हँसकर अपने काम पर लग जाता .मैंने उतना विशालकाय मटका अभी तक नही देखा ,उसका चित्र आज भी मेरी नज़रों के सामने है . सम्प्रति , मध्य प्रदेश मे प्राथमिक शिक्षा का कोर्स बदल गया है . बुढ़िया कि कविता कई सालो से अब इसमे नही है . बालभारती की वो किताब भी नही है . बुढ़िया के साहस की कहानी नही है . ये कविता अब तक मुझे याद है यही इसका जादू है . ढेर सारे गहने पहने वो बुढ़िया शायद अब अपनी ससुराल मे रहती हो ?
1 टिप्पणी:
bahut badiya, bachpan ki yad taza kar di is kavita ki panktiyon ne
budiya ne sochi tadbeer
jisase chamk uthi uski taqdeer
matka ed mangaya mol
lamba-lamba gol matol
usmen baithi budiya aap
sasural chali chupchap
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