जब गाँव से कोई शहर मे आता है, गाँव की मिटटी की खुशबू और, यादो की पोटली भी लाता है . उमरानाला पोस्ट यादों की गठरी मे से निकली कुछ बाते है .उमरानाला की लाल मिटटी की खुशबू है, जिसे मैं अखिल ब्रह्माण्ड मे कहीं भी कभी भी महसूस कर सकता हूं .
बुधवार, 30 जनवरी 2008
भोलेनाथ बचा लेना /उमरानाला की बात (०४)
उमरानाला की उमरा नदी का जिक्र आते ही इसके नीले नीले पानी की ठंडक मेरे मन को झंकृत करने लगती है . जहन मे सबसे पहले जो बात आती है वो इस नदी मे घर वालो को बिना बताये नहाने की शरारत . दरअसल इस नदी मे बचपन मे नहाने वाला हर शख्स मेरा दावा है की चोरीछिपे ही
नहाता है . इस नदी की खूबसूरती की जितनी भी तारीफ़ की जाये कम है . उमरानाला /इकल बिहरी /हिवरा मे ये नदी बहती है . और हर जगह इस नदी की अपनी खासियत व सुन्दरता है .उमरानाला मे इस पर सड़क और रेलवे का पुल है . तो हिवरा मे ये कुदरत के बेहद नजदीक है वहीं इकल बिहरी मे मंदिर और इसके तट पर बने घाट इसके वातावरण को पवित्र और धार्मिक बनाते है . उमरानाला नदी मे इसके पुल पर शंकरजी का एक छोटा लेकिन सुन्दर मंदिर है . सुबह शाम दोपहर और रात हर वक़त मे मैंने इस नदी की सुन्दरता को महसूस किया है. इस नदी के पानी का शोर मे अब भी सुन सकता हूँ . पत्थरों के बीच कल कल बहते जल का शोर एक अदभुत अनुभव देता है . हालांकि गर्मी आने से पहले पहले ही इस नदी का पानी सूख जाता है ,यानी केवल सात से आठ महीने ही इस नदी मे पानी रहता है. इस नदी का हर मौसम मे नज़ारा अपनी ही तरह की खासियत लिए होता है . बारिश मे इस नदी मे पूर (बाढ़) बहुत ज़ल्दी आके उतर जाती है . उमरानाला के समीप तन्सरा के सूफी संत दीवाने शाह बाबा को भी इस नदी से बेहद लगाव था . वे इस नदी मे बडे शौक से मछली पकड़ते थे . ये ही उनका शौक था . इसलिए भी इस नदी ने मुझे आत्मिक तृप्ति देने का काम किया .बात उन दिनो की जब मुझे और मेरे दोस्त आलोक को इस नदी मे नहाने का चस्का लगा. उन दिनो हम मिडिल स्कूल मे पढ़ते थे . मिडिल स्कूल मे दोपहर के वक़त छुट्टी हो जाती थी . घर आके हम सीधे नदी की ओर कूच कर जाते थे . हर रोज़ हम इस नदी मे चोरी छिपे नहाते थे घर वालो को पता न चले इसलिए नदी मे नहाने के बाद हम शंकर जी के मंदिर मे प्रार्थना करते की भगवन घर पर डाट न पड़े , हमको बचा लेना ...नदी मे अब नही नहायेंगे ...इस बार लाज रख लेना सोमवार को नारियल का प्रसाद चढायेगे बचा लेना ॥ सोमवार आता हम दोनों मंदिर जाते . लेकिन मंदिर के पास बहता नदी का पानी हमको फिर बुला लेता . और हम भगवान भोलेनाथ से कहते की हम प्रसाद लेकर आये है . पहले ज़रा नहा ले फिर प्रसाद अर्पित करेंगे . फिर नदी मे डुबकी मस्ती मौज ..... सोमवार का नारियल एक तरह से हमको इस बात की गारंटी लगता की भोले बाबा हमारे साथ है और हम बेफिक्र होके उमरा नदी मे नहा सकते है. गिरती बारिश मे , सर्दी मे हमने यहाँ खूब मज़ा किया . बचपन का ये वक्त मुझे सबसे उम्दा लगता है . इसके अलावा हमने हिवरा मे भी उमरा नदी मे नहाने का आनंद उठाया . कभी कभी हम इसमे वालीबाल जैसे खेल भी खेलते तो कभी कभी हमने पुराने टायर ट्यूब के साथ तैराकी सीखने का जतन भी किया . इस नदी मे दुर्गा उत्सव गणेश उत्सव मे प्रतिमा विसर्जन का भी अदभुत नज़ारा होता है. गर्मियों मे मैं और आलोक घंटो इस नदी के पास बैठकर बाते करते थे . गर्मियों मे हालांकि ये नदी सूख जाती है लेकिन सूखी होने के बावजूद इस नदी की सुन्दरता मे कोई फर्क नही पड़ता है . ये उन दिनो भी गाती बहती और बात करती लगती है !!सोमवार को भोलेबाबा को मनाने का सिलसिला लम्बा चला . और भोलेबाबा हमे बचाते रहे !!
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