जब गाँव से कोई शहर मे आता है, गाँव की मिटटी की खुशबू और, यादो की पोटली भी लाता है . उमरानाला पोस्ट यादों की गठरी मे से निकली कुछ बाते है .उमरानाला की लाल मिटटी की खुशबू है, जिसे मैं अखिल ब्रह्माण्ड मे कहीं भी कभी भी महसूस कर सकता हूं .
शनिवार, 26 जनवरी 2008
भुमकाल डोह का भूत /उमरानाला की बात (०३)
उमरा नदी में एक बहुत ही मनोरम जगह है भुमकाल डोह . इस जगह के बारे में मैंने बचपन में तरह की तरह की विचित्र बाते सुनी है . भुमकाल डोह में एक भूत है ... जिसकी रूचि लोगो का जीवन लेने में है . दोपहर के वक़्त इस जगह जो जाता है वो वापस लौट के नहीं आता है. भुमकाल डोह के पास जाना खतरे से खाली नहीं आदि आदि . इन तमाम तरह की बातों ने मेरे बल मन पर बड़ा गहरा असर किया . बचपन में मैं इस स्थान तक जाने की कभी हिम्मत नहीं जुटा पाया . भुमकाल डोह ( डोह यानी नदी के अन्दर एक गड्ढा) तैराकी के शौकीनों के लिए एक चुनौती भी था . इस डोह की गहराई के बारे में भी बहुत से किस्से है कुछ लोगो का कहना है भुमकाल डोह के अंदर अथाह पानी है ,जिसकी गहराई का अंदाज़ अभी तक कोई लगा नहीं पाया है . दस से बारह खटिया रस्सी इस डोह के अन्दर डाल कर लोग निरीक्षण कर चुके है , लेकिन इसकी गहराई अबूझ पहेली ही रही . हमारे गाँव के कुछ युवक इस डोह में लगातार तैराकी कर अपने शौर्य का प्रदर्शन भी करते रहे हैं .बहरहाल बात उन दिनों की है जब आठवी क्लास में पढता था ,एक रोज़ गर्मियों की छुट्टी में मैं अपने एक मित्र के साथ भुमकाल डोह गया .इसके बारे में जो भी मिथक मैंने सुने थे उसके चलते ही यहाँ जाते हुए मैं डर भी रहा था . लेकिन हम हिम्मत कर डोह तक पहुँच ही गए ... भुमकाल डोह को पहली बार देखते हुए मुझे लगा कि लोग नाहक इस इस सुन्दर और मनोरम स्थान को बदनाम करते है .भुमकाल डोह का सौन्दर्य अपने में अप्रतिम है ,इसके आस पास जंगल और खेतो के कारण इस जगह का सौन्दर्य देखते ही बनता है .घने जंगल के बीचों बीच होने की वजह से इस स्थान को आप जंगल में मंगल भी कह सकते है. मैंने सुन रखा था की इस जगह पर कभी कभी शेर भी आ जाता है . दूर होने की वजह से भी हो सकता है की इस जगह के बारे में ऐसे मिथक चलन में आ गए हो . लेकिन भुमकाल डोह का ये नाम कैसे पड़ा होगा ये जानने की मेरी रूचि जागी . गाँव के एक बुजुर्ग के मुताबिक भुमकाल डोह का ये नाम भुमका शब्द से बना ... देहात में भुमका के माने होते है तांत्रिक . इस जगह के बारे में एक प्रचलित धारणा ये भी है की किसी समय यहाँ पर एक तांत्रिक था , जो तंत्र सिद्धि के लिए यहाँ पर साधना करता था . उसके प्रभावों के कारण ही ये जगह भूतिया हो गयी . वैसे मैंने आज तक कभी भी इस जगह पर किसी तरह की दुर्घटना होने की बात नहीं सुनी . हालांकि यंहा पर कभी कभी जानवरों के पानी में डूबने की घटनाएं होती रही है. भुमकाल डोह के बारे में एक बात ये भी है की भूमि /नदी के अन्दर गड्ढा होने के कारण यंहा पानी के अन्दर भंवर पड़ते है इसलिए कुशल तैराक ही यहाँ पर तैराकी कर सकता है. आम के पेड़ों के ऊपर चढ़कर नदी में लम्बी छलांग लगाने का आनंद ही कुछ और है .यंहा तैराकी करने लोग समूह बनाकर ही आते है . कभी कभी ये किस्सा भी शाम को सुनने में आता था कि फलां लड़का डोह में डूबते डूबते बचा . मेरे बालमन पर इस डोह का खासा असर रहा ..रहस्य और रोमांच कि मुझे ये अदभुत दास्ताँ लगता था . आम के पेडो पर कभी कभी उल्लू भी दिख जाते थे ..जो निःसंदेह इस जगह को भुतिया होने का तमगा दिलवाने में मददगार थे.
भुमकाल डोह की दोपहर वाकई में भयभीत कर देती है खास तौर पर गर्मियों में ... दोपहर के वक़्त इस सुनसान जगह पर वक़त बिताना मुश्किल भरा लगता है. मुझे कुछ लोगो ने बताया की देवगढ़ वंश के राजा कोकशाह पूर्णिमा की रात में सफ़ेद घोडे पर यंहा सैर के लिए आते है. लेकिन इस जगह के सौन्दर्य को देखकर मैं ये बात अच्छी तरह समझ चुका था की ये सब मनगढ़ंत बाते है .इसके अलावा कुछ भी नहीं . अब इस डोह को लेकर हमारे गाँव में इस तरह की विचित्र बाते नहीं होती ..... आज कल यंहा पर लोग यंहा तक की बच्चे भी बेखौफ होके आते है.... भुमकाल डोह का भूत कहाँ गया ? मैं तलाश की कोशिश नहीं करता .लेकिन ये बात भी सच है यंहा से आने के बाद मेरे दोस्त की तबीयत लबे समय के लिए बिगड़ गयी थी . मेरा ये दोस्त आज कल भोपाल में है . उसके घर वाले आज भी मानते है ... कि उसे भुमकाल डोह का भूत झूम गया था .... भूत ने उसका पीछा लम्बे समय के बाद ही छोडा . आज वक़त बदल गया है भुमकाल डोह भुतिया जगह नहीं बल्कि एक अदद सैरगाह बन गया है . जो कि एक अच्छी बात है !!
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