बुधवार, 20 अगस्त 2008

"जोगी के वो दो महीने "

वी सी आर कहानी लिखते हुए मुझे हमेशा ऐसा लगा कि शादी के बाद जोगी के गीता के बिना दो महीने का जीवन कैसा रहा होगा । चूँकि इस कहानी को जल्दी समापन की ओर ले जाना था ,इसकी अन्तिम कड़ी भी आप को सौपं दी । लेकिन जोगी की फ़िल्म की कुछ रीले मेरे पास रह गई .अपने मित्रो की सलाह पर मैं इसे बोनस रीडिंग के वास्ते आप सब को नज़र कर रहा हूँ । "जोगी के दो महीने "वी सी आर कहानी के वो चंद पन्ने हैं , जो पहले आप तक नही पहुंचे ।

(अमिताभ )

जोगी ने जब गीता को सुहागरात के दूसरे दिन ही अपने घर से निकला तो उस समय उसके मन में आने वाले मुफलिसी के दौर का ज़रा भी एहसास नही था । उस वक्त वो बेहद गुस्से में था .उसे लगा कि उसे मिलकर गीता के परिजनों ने धोखा दिया है । करीब एक हफ्ता तो जोगी को गीता कि जुदाई महसूस ही नही हुई । दिन भर वो हिवारा में अपने खेतो में आवारा सा घूमता रहता । प्रकाश भी यदा कदा ही उसके सामने गीता का जिक्र करता । क्योंकि उसे भी लगने लगा था कि जोगी को समझना अब ब्रम्हा के बस में भी नही है । खेतों में खाली घूमने से उसे एक तरह से बोरियत सी होने लगी थी । पास पड़ोस के लोग भी पीठ पीछे उसके और गीता के संबंधों को लेकर बाते करने लगे थे । कुछ लोग रोजाना शाम को जोगी को समझाने के बहाने उसके घर में आते और दाढ़ गीली कर मुहं दबाके हस्ते हुए चले जाते थे । जोगी का किस्सा अब मशहूर हो चुका था । उसकी नौकरी चली गई ..और उसकी बीवी भी । जोगी को समाज दया के भाव से देखता था । ऐसा इसलिए नही कि समाज के भीतर उसके प्रति वास्तव में दया का कोई भाव था ..बल्कि उसकी मुसीबतों के ये पल लोगो के लिए मनोरजन का अच्छा जरिया थे । विडियो में काम करते हुए लोगो को फ़िल्म दिखा कर जोगी उनका मनोरंजन करता था .लेकिन अब वो ख़ुद ही बहुत बड़ा मनोरंजन बन गया .

प्रकाश के अलावा जोगी केवल उमरा नदी को ही अपना सच्चा साथी मानता था । वो सूखी उमरा नदी के किनारे बैठकर अपने सुख के पलों का इंतजार करता । गाँव के लोग उसे गाहे बगाहे आके बताते कि आज विडियो में ये फ़िल्म लगी है । जोगी हीरो हिरोइन की कास्टिंग फ़िल्म के नाम को गौर से सुनता , फ़िर जैसे कुछ सुना ही नही वो वहां से चला जाता । विडियो में लगी फ़िल्म का खाका वो अपने दिमाग में बुनने लगता .और ख़ुद को ही घंटों बताता कि ये फ़िल्म चलेगी या नही । शक्ति कपूर ज़रूर इज्ज़त लूटने की कोशिश करेगा सोचकर कभी कभी वो मुस्कुरा भी देता । बीच बीच में वो छिंदवाडा भी चला जाता . लेकिन उमरानाला बस स्टैंड पर खड़े खड़े वो भूल कर भी विडियो के पोस्टर को नही देखता । जोगी बस स्टैंड के पास एक होटल में अन्दर की तरफ़ छिपकर बैठा रहता । ताकि उसे कोई भी देख न ले । जोगी ने अपने इर्द गिर्द एक दायरा बना लिया था .इस दायरे में उसे रह रह कर वी सी आर की कमी भी महसूस होती.

गोह्जर में गीता के दुखों के पल भाभी के साथ बीतते थे । भाभी उसे भरोसा देती एक दिन जोगी को अपनी गलती का एहसास होगा । वो तुझे लेने ज़रूर आएगा .भाभी उसे समझाती कि वो दिल का बुरा आदमी नही है । भाभी कि बातों से गीता का हौसला और जोगी के लिए उसका भरोसा मज़बूत हो जाता । गीता दसवी तक उमरानाला में ही पढ़ी थी .भाभी ने उसे सलाह दी कि वो आगे की पढ़ाई को जारी रखे । गीता ने पत्राचार से बारहवी की परीक्षा देने का मन बना लिया ।जोगी की फोटो को वो घंटो निहारती । लेकिन यहाँ जोगी ने गुस्से में गीता की तस्वीर भी अपने पर्स से फेक दी थी । जोगी को धीरे धीरे वास्तविकता का एहसास होने लगा । जोगी अपने रिश्तेदार की शादी में बिछुआ गया जहाँ उसे लोगो ने टोक ही दिया बहु कहाँ है । जोगी को ये सवाल अंदर तक भेद गया । रिश्ते में जोगी की दूर की मामी ने उसे कहा कि बेटा शादी के बाद आदमी को जोड़े के साथ ही रिश्तेदारी में निकलना चाहिए । शादी के बाद मर्द अकेला घूमे तो लोग बातें बनते हैं .जोगी ने कहा हाँ जी लेकिन ऐसी कोई बात नही है ।धीरे धीरे लोग भी उससे किनारा करने लगे थे ।

बारिश शुरू होने वाली थी . जोगी ने अनमने ढंग से ही खेती में ध्यान देना शुरू किया . खेतों में हल चलते हुए उसे न जाने कितने दिन हो गए थे इसलिए शुरू शुरू में उसे ये सब ठीक नही लग रहा था .दिन भर खेतों में काम करने के बाद कम से कम रात में उसे ठीक ठाक नीद ज़रूर आ जाती थी . बारिश का मौसम शुरू होते ही उमरा नदी में भी पानी आ गया . पानी से बहती हुई नदी उसे अच्छी लगने लगी . जोगी ने मुरारी पंडित से भी अपनी तकदीर के बारे में पूछा मुरारी पंडित ने कहा जोगी बहुत जल्द सबकुछ ठीक हो जाएगा .मुरारी को ग्यारह रुपयों की दक्षिणा देकर उसे लगा जैसे उसने भगवान् और रूठे ग्रहों को मना लिया है . मुफलिसी के दौर में जोगी को अपने अच्छे और बुरे दोस्तों की पहचान भी बखूबी हो गई .एक दफे गीता के मामा से उसका सामना गाँव की चौपाल में हो गया . उन्हें देख कर उसके जख्म फिर ताज़ा हो गए . ऐसा नही था की जोगी को गीता की याद नही आती थी . गीता को याद भी करता ...लेकिन । जोगी को सब समझ आ रहा था लेकिन फिर भी वो वी सी आर की जिद में अपने दिल की आवाज़ को सुन नही पा रहा था.(मुझे अब भी लगता है कि जोगी की जिंदगी के इन दो महिनों को एक बार फिर झांक के देखा जाए .जोगी के इन दो महीने का ज़िक्र अभी भी लगता है जैसे बाकी है !)

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